इंदु-"तुम्हें भय है, और मुझे विश्वास है। लेकिन यह जानती हूँ कि हमारे मनोभाव समान दशाओं में एक-से होते हैं, इसलिए आपको इंतजार के कष्ट में नहीं डालना चाहती। यह लीजिए, यह मेरी तुच्छ भेंट है।"
यह कहकर इंदु ने एक सावरेन निकालकर इंद्रदत्त को दे दिया।
इंद्रदत्त-"इसे लेते हुए शंका होती है।"
इंदु-"किस बात की?"
इंद्रदत्त-"कि कहीं राजा साहब के विचार कुछ और ही हो।"
इंदु ने गर्व से सिर उठाकर कहा-"इसकी कुछ परवा नहीं।"
इंद्रदत्त-"हाँ, इस वक्त आपने रानियों की-सी बात कही। यह सावरेन सूरदास की नैतिक विजय का स्मारक है। आपको अनेक धन्यवाद! अब मुझे आज्ञा दोजिए। अभी बहुत चक्कर लगाना है। जुर्माने के अतिरिक्त और जो कुछ मिल जाय, उसे भी नहीं छोड़ना चाहता।"
इंद्रदत्त उतरकर जाना ही चाहते थे कि इंदु ने जेब से दूसरा सावरेन निकालकर कहा-“यह लो, शायद इससे तुम्हारे चक्कर में कुछ कमी हो जाय ।"
इंद्रदत्त ने सावरेन जेब में रखा, और खुश-खुश चले। लेकिन इंदु कुछ चिंतित सी हो गई। उसे विचार आया-“कहीं राजा साहब वास्तव में सूरदास को अपराधी समझते हों, तो मुझे जरूर आड़े हाथों लेंगे। खैर, होगा, मैं इतना दबना भी नहीं चाहती। मेरा कर्तव्य है सत्कार्य में उनसे दबना। अगर कुविचार में पड़कर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगें, तो मुझे उनसे मतभेद रखने का पूरा अधिकार है। बुरे कामों में उनसे दबना मनुष्य के पद से गिर जाना है। मैं पहले मनुष्य हूं; पत्नी, माता, बहन, बेटी पीछे"
इंदु इन्हीं विचारों में मन थी कि मि० जॉन सेवक और उनकी स्त्री मिल गई।
जॉन सेवक ने टोप उतारा। मिसेज सेवक बोलीं-"हम लोग तो आप ही की तरफ जा रहे थे। इधर कई दिन से मुलाकात न हुई थी। जी लगा हुआ था। अच्छा हुआ, राह ही में मिल गई।"
इंदु-“जी नहीं, मैं राह में नहीं मिली। यह देखिए, जाती हूँ; आप जहाँ जाती हैं, वहीं जाइए।"
जॉन सेवक-"मैं तो हमेशा Compromise पसंद करता हूँ। यह आगे पार्क "आता है। आज बैंड भी होगा, वहीं जा बैठे।"
इंदु-"वह Compromise पक्षपात-रहित तो नहीं है, लेकिन खैर!"
पार्क में तीनों आदमी उतरे और कुर्सियों पर जा बैठे। इंदु ने पूछा-"सोफिया का कोई पत्र आया था?"
मिसेज सेवक-"मैंने तो समझ लिया कि वह मर गई। मिल क्लार्क जैसा आदमी उसे न मिलेगा। जब तक यहाँ रही, टालमटोल करती रही। वहाँ जाकर विद्रोहियों से