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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/४२

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रंगभूमि

सोफिया-"मैंने तो इरादा कर लिया है कि विवाह न करूँगी!"

इंदु-"क्यों?"

सोफ़िया-"इसलिए कि विवाह से मुझे अपनी धार्मिक स्वाधीनता त्याग देनी पड़ेगी धर्म विचार-स्वातन्त्र्य का गला घोंट देता है। मैं अपनी आत्मा को किसी मत के हाथ नहीं बेचना चाहती। मुझे ऐसा ईसाई पुरुष मिलने की आशा नहीं, जिसका हृदय इतना उदार हो कि वह मेरी धार्मिक शंकाओं को दरगुजर कर सके। मैं परिस्थिति से विवश होकर ईसा को खुदा का बेटा और अपना मुक्तिदाता नहीं मान सकती, विवश होकर गिरिजाघर में ईश्वर की प्रार्थना करने नहीं जाना चाहती। मैं ईसा को ईश्वर नहीं मान सकती।"

इंदु-"मैं तो समझती थी, तुम्हारे यहाँ हम लोगों के यहाँ से कहीं ज्यादा आजादी है; जहाँ चाहो, अकेली जा सकती हो। हमारा तो घर से निकलना मुश्किल है।"

सोफिया-"लेकिन इतनी धार्मिक संकीर्णता तो नहीं है?"

इंदु-"नहीं, कोई किसी को पूजा-पाठ के लिए मजबूर नहीं करता। बाबूजी नित्य गंगा स्नान करते हैं, घण्टों शिव की आराधना करते हैं। अम्माँजी कभी भूलकर भी स्नान करने नहीं जातीं, न किसी देवता की पूजा करती हैं; पर बाबूजी कभी आग्रहः नहीं करते। भक्ति तो अपने विश्वास और मनोवृत्ति पर ही निर्भर है। हम भाई-बहन के विचारों में भी आकाश-पाताल का अन्तर है। मैं कृष्ण की उपासिका हूँ, विनय ईश्वर के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं करता; पर बाबूजी हम लोगों से कभी कुछ नहीं कहते, और न हम भाई-बहन में कभी इस विषय पर वाद-विवाद होता है।"

सोफिया-"हमारी स्वाधीनता लौकिक और इसलिए मिथ्या है। आपकी स्वाधीनता मानसिक और इसलिए सत्य है। असली स्वाधीनता वही है, जो विचार के प्रवाह में बाधक न हो।"

इंदु-"तुम गिरजे में कभी नहीं जाती?"

सोफिया-"पहले दुराग्रह-वश जाती थी, अब की नहीं गई। इस पर घर के लोग बहुत नाराज हुए। बुरी तरह तिरस्कार किया गया।"

इंदु ने प्रेममयी सरलता से कहा-“वे लोग नाराज हुए होंगे, तो तुम बहुत रोई होंगी। इन प्यारी आँखों से आँसू बहे होंगे। मुझसे किसी का रोना नहीं देखा जाता।"

सोफिया-"पहले रोया करती थी, अब परवा नहीं करती।"

इंदु-"मुझे तो कभी कोई कुछ कह देता है, तो हृदय पर तीर-सा लगता है। दिन-दिन भर रोती ही रह जाती हूँ। आँसू ही नहीं थमते। वह बात बार-बार हृदय में चुभा करती है। सच पूछो, तो मुझे किसी के क्रोध पर रोना नहीं आता, रोना आता है अपने ऊपर कि मैंने क्यों उन्हें नाराज किया, क्यों मुझसे ऐसी भूल हुई।"

सोफिया को भ्रम हुआ कि इंदु मुझे अपनी क्षमाशीलता से लज्जित करना चाहती