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रंगभूमि


की ओर से। सोफिया को अब भी भय था कि यद्यपि रानी मुझ पर बड़ी कृपा-दृष्टि रखती हैं, पर दिल से उन्हें यह संबंध पसंद नहीं। उसका यह भय सर्वथा अकारण भी न था। रानी भी सोफिया से प्रेम कर सकती थीं, और करती थीं, उसका आदर कर सकती थीं, और करती थीं; पर अपनी वधू में वह त्याग और विचार की अपेक्षा लज्जाशीलता, सरलता, संकोच और कुल-प्रतिष्ठा को अधिक मूल्यवान् समझती थीं, संन्यासिनी वधू नहीं, भोग करनेवाली वधू चाहती थीं। कितु वह अपने हृदयंगत भावों को भूलकर भी मुँह से न निकालती थीं। नहीं, वह इस विचार को मन में आने ही न देना चाहती थीं, इसे कृतघ्नता समझती थीं।

कुँवर साहब कई दिन तक इसी संकट में पड़े रहे। मि० जॉन सेवक से बात-चीत किये बिना विवाह कैसे ठीक होता? आखिर एक दिन इच्छा न होने पर भी विवश होकर उनके पास गये। संध्या हो गई थी। मि० सेवक अभी-अभी मिल से लौटे थे, और मजदूरों के मकानों की स्कीम सामने रखे हुए कुछ सोच रहे थे। कुँवर साहब को देखते ही उठे और बड़े तपाक से हाथ मिलाया।

कुँवर साहब कुर्सी पर बैठते हुए बोले—"आप विनय और सोफिया के विवाह के विषय में क्या निश्चय करते हैं? आप मेरे मित्र और सोफिया के पिता हैं, और दोनों ही नाते से मुझे आपसे यह कहने का अधिकार है कि अब इस काम में देर न कीजिए।"

जॉन सेवक—"मित्रता के नाते आप मुझसे चाहे जो सेवा ले सकते हैं, लेकिन (गंभीर भाव से) सोफिया के पिता के नाते मुझे कोई निश्चय करने का अधिकार नहीं। उसने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया। नहीं तो उसे इतने दिन यहाँ आये हो गये, क्या एक बार भी यहाँ तक न आती? उसने हमसे यह अधिकार छीन लिया।"

इतने में मिसेज सेवक भी आ गई। पति की बातें सुनकर बोलीं-"मैं तो मर जाऊँगी, लेकिन उसकी सूरत न देखूँगी। हमारा उससे अब कोई संबंध नहीं रहा।"

कुँवर—"आप लोग सोफिया पर अन्याय कर रहे हैं। जब से वह आई है, एक दिन के लिए भी घर से नहीं निकली। इसका कारण केवल संकोच है, और कुछ नही। शायद डरती है कि बाहर निकलूँ, और किसी पुराने परिचित से साक्षात् हो जाय, तो उसमे क्या बात करूँगी। थोड़ी देर के लिए कल्पना कर लीजिए कि हममें से कोई भी उसकी जगह होता, तो उसके मन में कैसे भाव आते। इस विषय में वह क्षम्य है। मैं तो इसे अपना दुर्भाग्य समझूँगा, अगर आप लोग उससे यों विरक्त हो जायँगे। अब विवाह में विलंब न होना चाहिए।'

मिसेज सेवक—"खुदा वह दिन न लाये। मेरे लिए तो वह मर गई, उसका फातेहा पढ़ चुकी, उसके नाम को जितना रोना था, रो चुकी!"

कुँवर—"यह ज्यादती आप लोग मेरी रियासत के साथ कर रहे हैं, विवाह एक ऐसा उपाय है, जो विनय की उदंडता को शांत कर सकता है।"