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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/४८१

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रंगभूमि


आप लोग स्वयं धुकुर-पुकुर कर रहे हैं, तो वह भी इन युक्तियों से अपनी आबरू बचाती है।"

इंदु-"ऐसा कहीं भूलकर भी न करना, नहीं तो वह इस घर में भी न रहेगी।"

इतने में सोफ़िया वह पत्र लिये हुए आती दिखाई दी, जो उसने प्रभु सेवक के नाम लिखा था। इंदु ने बात पलट दी, और बोली-"तुम लोगों को तो अभी खबर न होगी, मि० सेवक को पाँड़ेपुर मिल गया।"

सोफिया ने इंदु के गले मिलते हुए पूछा-"पापा वह गाँव लेकर क्या करेंगे?"

इंदु-"अभी तुम्हें मालूम ही नहीं? वह मुहल्ला खुदवाकर फेंक दिया जायगा और वहाँ मिल के मजदूरों के लिए घर बनेंगे।"

इंद्रदत्त-"राजा साहब ने मंजूर कर लिया? इतनी जल्द भूल गये। अबक्री शहर में रहना मुश्किल हो जायगा।"

इंदु---"सरकार का आदेश था, कैसे न मंजूर करते।"

इंद्रदत्त-"साहब ने बड़ी दौड़ लगाई। सरकार पर भी मंत्र चला दिया।"

इंदु--:"क्यों, इतनी बड़ी रियासत पर सरकार का अधिकार नहीं करा दिया? एक राजद्रोही राजा को अपंग नही बना दिया? एक क्रांतिकारी संस्था की जड़ नहीं खोद डाली १ सरकार पर इतने एहसान करके यही छोड़ देते? चतुर व्यवसायी न हुए कोई

राजा-ठाकुर हुए! सबसे बड़ी बात तो यह है कि कंपनी ने पच्चीस सैकड़े नफा देकर बोर्ड के अधिकांश सदस्यों को वशीभूत कर लिया।"

विनय-"राजा साहब को पद-त्याग कर देना चाहिए था। इतनी बड़ी जिम्मेदारी सिर पर लेने से तो यह कहीं अच्छा होता।"

इंदु-"कुछ सोच-समझकर तो स्वीकार किया होगा। सुना, पाँड़ेपुरवाले अपने घर छोड़ने पर राजी नहीं होते।"

इंद्रदत्त-"न होना चाहिए।"

सोफिया-"जरा चलकर देखना चाहिए, वहाँ क्या हो रहा है। लेकिन कहीं मुझे पापा नजर आ गये, तो? नहीं, मैं न जाऊँगी, तुम्हीं लोग जाओ।"

तीनों आदमी पाँडेपुर की तरफ चले।



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