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रंगभूमि


उस पर अश्लील कबीरों की बौछार शुरू कर दी। सूरदास को यह बुरा मालूम हुआ, बोला-'यारो, क्यों अपनी जबान खराब करते हो? वह बिचारी तो अपनी राह चली जाती है, और तुम लोग उसका पीछा नहीं छोड़ते। वह भी तो किसी की बहू-बेटी होगी।"

एक मजदूर बोला-"भीख माँगों भीख, जो तुम्हारे करम में लिखा है। हम गाते हैं, तो तुम्हारी नानी क्यों मरती है?"

सूरदास-"गाने को थोड़े ही कोई मने करता है।"

मजदूर--"तो हम क्या लाठी चलाते हैं ?"

सूरदास-"उस औरत को छेड़ते क्यों हो?"

मजदूर-"तो तुम्हें क्याँ बुरा लगता है? तुम्हारी बहन है कि बेटी?"

सूरदास-"बेटी भी है, बहन भी है, हमारी हुई तो, किसी दूसरे भाई की हुई तो?"

उसके मुँह से वाक्य का अंतिम शब्द निकलने भी न पाया था कि एक मजदूर ने चुपके से जाकर उसकी एक टाँग पकड़कर खींच ली। बेचारा बेखबर खड़ा था। कंकड़ पर इतनी जोर से मुँह के बल गिरा कि सामने के दो दाँत टूट गये, छाती में बड़ी चोट आई, ओठ कट गये, मूर्छा-सी आ गई। पंद्रह-बीस मिनट तक वहीं अचेत पड़ा रहा। कोई मजदूर निकट भी न आया, सब अपनी राह चले गये। संयोग से नायकराम उसी समय शहर से आ रहे थे। सूरदास को सड़क पर पड़े देखा, तो चकराये कि माजरा क्या है, किसी ने मारा-पीटा तो नहीं? बजरंगी के सिवा और किसमें इतना दम है। बुग किया। कितना ही हो, अपने धर्म का सच्चा है। दया आ गई। समीप आकर हिलाया, तो सूरदास को होश आया, उठकर नायकराम का एक हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से लाठी टेकता हआ चला।

नायकराम ने पूछा-"किसी ने मारा है क्या सूरे, मुँह से लहू बह रहा है?"

सूरदास-"नहीं भैया, ठोकर खाकर गिर पड़ा था।"

नायकराम-"छिपाओ मत, अगर बजरंगी या जगधर ने मारा हो, तो बता दो। दोनों को साल-साल-भर के लिए भिजवा न दूँ, तो ब्राह्मण नहीं।”


सूरदास-"नहीं भैया, किसी ने नहीं मारा, झूठ किसे लगा हूँ।"

नायकराम-"मिलवालों में से तो किसी ने नहीं मारा? ये सब राह-चलते आदमियों को बहुत छेड़ा करते हैं। कहता हूँ, लुटवा दूँगा, इन झोपड़ों में आग न लगा दूँ, तो कहना। बताओ, किसने यह काम किया? तुम तो आज तक कभी ठोकर खाकर नहीं गिरे। सारी देह लहू से लतपत हो गई है।"

सूरदास ने किसी का नाम न बतलाया। जानता था कि नायकराम क्रोध में आ जायगा, तो मरने-मारने को न डरेगा। घर पहुँचा, तो सारा मुहल्ला दौड़ा। हाय! हाय! किस मुद्दई ने बेचारे अंधे को मारा, देखो तो, मुँह कितना सूज आया है! लोगों ने