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रंगभूमि


फिर गई। कहीं थानेदार होते, तो किसी को घर में न रहने देते। इसी से कहा है, गंजे के नह नहीं होते।"

मिस्टर क्लार्क के बाद मि० सेनापति जिलाधीश हो गए थे। सरकार का धन खर्च करते काँपते थे। पैसे की जगह धेले से काम निकालते थे। डरते रहते थे कि कहीं बदनाम न हो जाऊँ। उनमें वह आत्मविश्वास न था, जो गरेज अफसरों को होता है। अँगरेजों पर पक्षपात का संदेह नहीं किया जा सकता, वे निर्भीक और स्वाधीन होते हैं। मि० सेनापति को संदेह हुआ कि मुआवजे बड़ी नरमी से लिखे गए हैं। उन्होंने उसकी आधी रकम काफी समझी। अब यह मिसिल प्रांतीय सरकार के पास स्वीकृति के लिये भेजी गयी। वहाँ फिर उसकी जाँच होने लगी। इस तरह तीन महीने की अवधि गुजर गई, और मि० जॉन सेवक पुलिस के सुपरिटेंडेंट, दारोगा माहिरअली और मजदूरों के साथ मुहल्ले को खाली कराने के लिये आ पहुँचे। लोगों ने कहा, अभी तो हमको रुपये ही नहीं मिले। जॉन सेवक ने जवाब दिया, हमें तुम्हारे रुपयों से कोई मतलब नहीं, रुपये जिससे मिलें, उससे लो। हमें तो सरकार ने १ मई को मुहल्ला खाली करा देने का वचन दिया है, और अगर कोई कह दे कि आज १ मई नहीं है, तो हम लौट जायँगे। अब लोगों में बड़ी खलबली पड़ी, सरकार की क्या नियत है? क्या मुआवजा दिए बिना ही हमें निकाल दिया जायगा। घर-का-घर छोड़ें, और मुआवजा भी न मिले! यह तो बिना मौत मरे। रुपये मिल जाते, तो कहीं जमीन लेकर घर बनवाते, खाली हाथ कहाँ जाँय। क्या घर में खजाना रक्खा हुआ है! एक तो रुपया के चार आने मिलने का हुक्म हुआ, उसका भी यह हाल! न-जाने सरकार की नीयत बदल गई कि बीचवाले खाए जाते हैं।

माहिरअली ने कहा-"तुम लोगों को जो कुछ कहना-सुनना है, जाकर हाकिम जिला से कहो। मकान आज खाली करा लिए जायँगे।"

बजरंगी-"मकान कैसे खाली होंगे, कोई राहजनी है! जिस हाकिम का यह हुकुम है, उसी हाकिम का तो यह हुकुम भी है।"

माहिर-"कहता हूँ, सीधे से अपने बोरिए-बकचे लादो, और चलते-फिरते नजर आओ। नाहक हमें गुस्सा क्यों दिलाते हो? कहीं मि० हंटर को आ गया जोश, तो फिर तुम्हारी खैरियत नहीं।"

नायकराम-"दरोगाजी, दो-चार दिन की मुहलत दे दीजिए। रुपये मिलेंगे ही, ये बेचारे क्या बुरा कहते हैं कि बिना रुपये-पैसे कहाँ भटकते फिरें।"

मि० जॉन सेवक तो सुपरिटेंडेंट को साथ लेकर मिल की सैर करने चले गए थे, वहाँ चाय-पानी का प्रबंध किया गया था, माहिरअली की हुकूमत थी। बोले-"पंडाजी, ये झाँसे दूसरों को देना। यहाँ तुम्हें बहुत दिनों से देख रहे हैं, और तुम्हारी नस-नस पहचानते हैं। मकान आज और आज खाली होंगे।"

सहसा एक ओर से दो बच्चे खेलते हुए आ गए, दोनों नंगे पाँव थे, फटे हुए कपड़े