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रंगभूमि


इनमें सभी भले आदमी हैं, जिनके बाल-बच्चे हैं, जो थोड़े वेतन पर तुम्हारे जान-माल की रक्षा करने के लिए घर से आये हैं।"

एक आदमी-"हमारे जान-माल की रक्षा करते हैं, या सरकार के रोब-दाब की?"

इंद्रदत्त"-एक ही बात है । तुम्हारे जान-माल की रक्षा के लिए सरकार के रोब-दाब की रक्षा करनी परमावश्यक है। इन्हें जो वेतन मिलता है, वह एक मजूर से भी कम है...।"

एक प्रश्न-"बग्घी-इक्केवालों से पैसे नहीं लेते।"

दूसरा प्रश्न-"चोरियाँ नहीं कराते १ जुआ नहीं खेलाते १ घूस नहीं खाते?"

इंद्रदत्त-"यह सब इसीलिए होता है कि वेतन जितना मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलता। ये भी हमारी और तुम्हारी भाँति मनुष्य हैं, इनमें भी दया और विवेक है, ये भी दुर्बलों पर हाथ उठाना नीचता समझते हैं। जो कुछ करते हैं, मजबूर होकर। इन्हीं से कहो, अंधे पर तरस खाये, उसकी झोपड़ी बचायें। (सिपाहियों से) क्यों मित्रो, तुमसे इस दया की आशा रखें? इन मनुष्यों पर क्या करोगे?"

इंद्रदत्त ने एक और जनता के मन में सिपाहियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने की चेष्टा की और दूसरी ओर सिपाहियों की मनोगत दया को जाग्रत करने की। हवलदार संगीनों के पीछे खड़ा था। बोला-"हमारी रोजी बचाकर और जो चाहे कीजिए। इधर से न जाइए।"

इंद्रदत्त-"तो रोजी के लिए इतने प्राणियों का सर्वनाश कर दोगे? ये बेचारे भी तो एक दीन की रक्षा करने आये हैं। जो ईश्वर यहाँ तुम्हारा पालन करता है, वह क्या किसी दूसरी जगह तुम्हें भूखों मारेगा? अरे! यह कौन पत्थर फेकता है? याद रखो, तुम लोग न्याय की रक्षा करने आये हो, बलवा करने नहीं। ऐसे नीच आघातों से अपने को कलंकित न करो। मत हाथ उठाओ, अगर तुम्हारे ऊपर गोलियों की बाढ़ भी चले.....।"

इंद्रदत्त को कुछ और कहने का अवसर न मिला। सुपरिटेंडेंट ने गली के मोड़ पर आदमियों का जमाव देखा, तो घोड़ा दौड़ाता इधर चला। इंद्रदत्त की आवाज कानों में पड़ी, तो डाँटकर बोला-"हटा दो इसको। इन सब आदमियों को अभी सामने से हटा दो। तुम सब आदमी अभी हट जाओ, नहीं हम गोली मार देगा।"

समूह जौ-भर भी न हटा।

"अभी हट जाओ, नहीं हम फायर कर देगा।"

कोई आदमी अपनी जगह से न हिला।

सुपरिटेंडेंट ने तीसरी बार आदमियों को हट जाने की आज्ञा दी।

समूह शांत, गंभीर, स्थिर रहा।

फायर करने की आशा हुई, सिपाहियों ने बंदूकें हाथ में लीं। इतने में राजा साहब बदहवास आकर बोले—"For God's sake Mr. Brown spare me!"