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रंगभूमि


जब वे आये और यहाँ की स्थिति देखी, तो रातों-रात भाग खड़े हुए। तब अधिकारियों ने सरकारी बर्कदाजों और तहसील के चपरासियों को बड़े-बड़े प्रलोभन देकर काम करने के लिए तैयार किया, पर जब उनके सामने सैकड़ों युवक, जिनमें कितने ही ऊँचे कुलों के थे, हाथ बाँधकर खड़े हो गये और विनय की कि भाइयो, ईश्वर के लिए फावड़े न चलाओ, और अगर चलाया ही चाहते हो, तो पहले हमारी गरदन पर चलाओ, तो उन सबों की भी काया-पलट हो गई। दूसरे दिन से वे लोग फिर काम पर न आये। विनय और उनके सहकारी सेवक आजकल इस सत्याग्रह को अग्रसर करने में व्यस्त रहते थे।

सूरदास सबेरे से संध्या तक झोंपड़े के द्वार पर मूर्तिवत् बैठा रहता। हवलदार और उसके सिपाहियों पर अदालत में अभियोग चल रहा था। घटनास्थल को रक्षा के लिए दूसरे जिले से सशस्त्र पुलिस बुलाई गई थी। वे सिपाही संगीनें चढ़ाये चौबीसों घन्टे झोपड़ी के सामनेवाले मैदान में टहलते रहते थे। शहर के हजार-दो-हजार आदमी आठों पहर मौजूद रहते। एक जाता, तो दूसरा आता। आने-जानेवालों का ताँता दिन-भर न टूटता था। सेवक दल भी नायकराम के खाली बरामदे में आसन जमाए रहता था कि न जाने कब क्या उपद्रव हो जाय। राजा महेंद्रकुमार और सुपरिंटेंडेंट पुलिस दिन में दो-दो बार अवश्य आते थे, किंतु किसो कारण झोंपड़ा गिराने का हुक्म न देते थे। जनता को ओर से उपद्रव का इतना भय न था, जितना पुलिस की अवज्ञा का। हवलदार के व्यवहार से समस्त अधिकारियों के दिल में हौल समा गया था। प्रांतोय सरकार को यहाँ की स्थिति की प्रति दिन सूचना दी जाती थी। सरकार ने भी आश्वासन दिया था कि शीघ्र ही गोरखों का एक रेजिमेंट भेजने का प्रबंध किया जायगा। अधिकारियों को आशा अब गोरखों हो पर अवलंबित थी, जिनकी राजभक्ति पर उन्हें पूरा विश्वास था। विनय प्रायः दिन-भर यहीं रहा करते थे। उनके और राजा साहब के बीच में अब नंगी तलवार का बीच था। वह विनय को देखते, तो घृणा से मुँह फेर लेते। उनकी दृष्टि में विनय सूत्रधार था, सूरदास केवल कठपुतली।

रानी जाह्नवी ज्यों-ज्यों विवाह की तैयारियाँ करती थीं और संस्कारों की तिथि समीप आती जाती थी, सोफिया का हृदय एक अज्ञात भय, एक अव्यक्त शंका, एक अनिष्ट-चिता से आच्छन्न होता जाता था। भय यह था कि कदाचित् विवाह के पश्चात्ह मारा दांपत्य जीवन सुखमय न हो, हम दोनो को एक दूसरे के चरित्र-दोष ज्ञात हों, और हमारा जीवन दुःखमय हो जाय। विनय की दृष्टि में सोफी निर्विकार, निर्दोष, उज्ज्वल, दिव्य सर्वगुण-संपन्ना देवी थी। सोफी को विनय पर इतना विश्वास न था। उसके तात्त्विक विवेचन ने उसे मानव-चारित्र की विषमताओं से अवगत कर दिया था। उसने बड़े-बड़े महात्माओं, ऋषियों, मुनियों, विद्वानों, योगियों और ज्ञानियों को, जो अपनी घोर तपस्याओं और साधनाओं से वासनाओं का दमन कर चुके थे, संसार के चिकने, पर काई से ढके हुए, तल पर फिसलते देखा था। वह जानती थी कि यद्यपि संयम-शील पुरुष बड़ी