पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५२०
रंगभूमि


परे न जाने देना चाहता था, उन्हें देखते ही उसका चेहरा फूल के समान खिल उठता था, नेत्रों में प्रेम-मद छा जाता था, पर विवेक-बुद्धि उसे तुरत अपने कर्तव्य की याद दिला देती थी। वह सोचती थी कि जब विनय मेरे पास आयें, तो मैं निष्ठुर बन जाऊँ, बोलूंँ ही नहीं, आप चले जायँगे; लेकिन यह उसकी पवित्र कामना थी। वह इतनो निर्दय, इतनी स्नेह-शून्य न हो सकती थी। भय होता था, कहीं बुरा न मान जायँ। कहीं यह न समझने लगें कि इसका चित्त चंचल है, या यह स्वार्थ-परायण है, बीमारी में तो स्नेह की मूर्ति बनी हुई थी, अब मुझसे बोलते भी जबान दुखती है। सोफी! तेरा मन प्रेम में बसा हुआ है, बुद्धि यश और कीर्ति में, और इन दोनों में निरंतर संघर्ष हो रहा है।

संग्राम को छिड़े हुए दो महीने हो गये थे। समस्या प्रतिदिन भीषण होती जाती थी, स्वयंसेवकों की पकड़-धकड़ से संतुष्ट न होकर गोरखों ने अब उन्हें शारीरिक कष्ट देना शुरू कर दिया था, अपमान भी करते थे, और अपने अमानुषिक कृत्यों से उनको भयभीत कर देना चाहते थे। पर अंधे पर बंदूक चलाने या झोपड़े में आग लगाने की हिम्मत न पड़ती थी। क्रांति का भय न था, विद्रोह का भय न था, भीषण-से-भीषण विद्रोह भी उनको आशंकित न कर सकता था, भय था हत्याकांड का, न जाने कितने गरीब मर जाँय, न जाने कितना हाहाकार मच जाय! पाषाण-हृदय भी एक बार रक्त-प्रवाह से काँप उठता है!

सारे नगर में, गली-गली, घर-घर यही चर्चा होती रहती थी। सहस्रों नगरवासी रोज वहाँ पहुँच जाते, केवल तमाशा देखने नहीं, बल्कि एक बार उस पूर्ण-कुटो और उसके चक्षुहीन निवासी का दर्शन करने के लिए और अवसर पड़ने पर अपने से जो कुछ हो सके, कर दिखाने के लिए। सेवकों की गिरफ्तारी से उनकी उत्सुकता और भी बढ़ गई थी। आत्मसमर्पण की हवा-सी चल पड़ी थी।

तीसरा पहर था। एक आदमी डौंडो पीटता हुआ निकला। विनय ने नौकर को भेजा कि क्या बात है। उसने लौटकर कहा, सरकार का हुक्म हुआ है कि आज से शहर का कोई आदमी पाँड़ेपुर न जाय, सरकार उसकी प्राण-रक्षा की जिम्मेदार न होगी।

विनय ने सचिंत भाव से कहा-"आज कोई नया आघात होनेवाला है।"

सोफिया-"मालूम तो ऐसा ही होता है।"

विनय-"शायद सरकार ने इस संग्राम का अंत करने का निश्चय कर लिया है।"

सोफिया-"ऐसा ही जान पड़ता है।"

विनय--"भीषण रक्त-पात होगा।"

सोफिया-"अवश्य होगा।"

सहसा एक वालंटियर ने आकर विनय को नमस्कार किया और बोला-'आज तो उधर का रास्ता बंद कर दिया गया है। मि० क्लार्क राजपूताना से जिलाधीश की जगह आ गये हैं। मि० सेनापति मुअत्तल कर दिये गये हैं।"