आकर अनेकों यत्न करने पर भी दिन-दिन सूखता जाता है, वैसी ही दशा उसकी भी हो गई है। उसे रात-दिन यही चिंता व्याप्त रहती है कि कहाँ जाऊँ, क्या करूँ? अगर आपने जल्द उसे वहाँ से बुला न लिया, तो आपको पछताना पड़ेगा। वह आजकल बौद्ध और जैन-ग्रंथों को देखा करती है, और मुझे आश्चर्य न होगा, अगर वह हमसे सदा के लिए छूट जाय।"
जॉन सेवक-"तुम तो रोज वहाँ जाते हो, क्यों अपने साथ नहीं लाते?"
मिसेज सेवक-"मुझे इसकी चिंता नहीं है। प्रभु मसीह का द्रोही मेरे यहाँ आश्रय नहीं पा सकता।"
प्रभु सेवक-"गिरजे न जाना ही अगर प्रभु मसीह का द्रोही बनना है, तो लीजिए, आज से मैं भी गिरजे न जाऊँगा। निकाल दीजिए मुझे भी घर से।”
मिसेज सेवक-(रोकर) "तो यहाँ मेरा ही क्या रखा है। अगर मैं ही विष की गाँठ हूँ, तो मैं ही मुँह में कालिख लगाकर क्यों न निकल जाऊँ। तुम और सोफी आराम से रहो, मेरा भी खुदा मालिक है।'
जॉन सेवक-"प्रभु, तुम मेरे सामने अपनी माँ का निरादर नहीं कर सकते।"
प्रभु सेवक-"खुदा न करे, मैं अपनी मां का निरादर करूँ। लेकिन मैं दिखावे के धर्म के लिए अपनी आत्मा पर यह अत्याचार न होने दूँगा। आप लोगों की नाराजी के खौफ से अब तक मैंने इस विषय में कभी मुँह नहीं खोला। लेकिन जब देखता हूँ कि और किसी बात में तो धर्म की परवा नहीं की जाती, और सारा धर्मातुराग दिखावे के धर्म पर ही किया जा रहा है, तो मुझे संदेह होने लगता है कि इसका तात्पर्य कुछ और तो नहीं।"
जॉन सेवक-"तुमने किस बात में मुझे धर्म के विरुद्ध आचरण करते देखा?"
प्रभु सेवक-"सैकड़ों ही बातें हैं, एक हो, तो कहूँ।”
जॉन सेवक-"नहीं, एक ही बतलाओ।"
प्रभु सेवक-"उस बेकस अंधे की जमीन पर कब्जा करने के लिए आप जिन साधनों का उपयोग कर रहे हैं, क्या वे धर्म-संगत हैं? धर्म का अंत वहीं हो गया, जब उसने कह दिया कि मैं अपनी जमीन किसी तरह न दूँगा। अब कानूनी विधानों से, कूटनीति से, धमकियों से अपना मतलब निकालना आपको धर्म-संगत मालूम होता हो; पर मुझे तो वह सर्वथा अधर्म और अन्याय ही प्रतीत होता है।"
जॉन सेवक-"तुम इस वक्त अपने होश में नहीं हो, मैं तुमसे वाद-विवाद नहीं करना चाहता। पहले जाकर शांत हो आओ, फिर मैं तुम्हें इसका उत्तर दूँगा।"
प्रभु सेवक क्रोध से भरा हुआ अपने कमरे में आया और सोचने लगा कि क्या करूँ। यहाँ तक उसका सत्याग्रह शब्दों ही तक सीमित था, अब उसके क्रियात्मक होने का अवसर आ गया; पर क्रियात्मक शक्ति का उसके चरित्र में एकमात्र अभाव था। इस उद्विग्न दशा में वह कभी एक कोट पहनता, कभी उसे उतारकर दूसरा पहनता, कभी कमरे