पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१०७

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अधिकार था कि सङ्घ के भेजे हुए आदमी को पीटने के लिये तैयार हो गये।"

"भाई साहब, मैं क्यों तैयार हो गया मेरी पत्नी ने वैसे ही कह दिया था।"

"और मेरे पिता से उस कमबख्त रंगरेज ने एक ऐसी बात कह दी कि उन्हें बुरी लगी।"

"क्या बात कही, बताइये।"

सदस्य ने बता दी। इस पर कुछ सदस्य ने रंगरेज का पक्ष लिया, कुछ ने सदस्य के पिता का व्यवहार ठीक बताया। इस मसले को लेकर काफी वाद-विवाद हुआ।---यहाँ तक के गाली गलौज की नौबत पहुँच गई। दोनों दलों में खूब कहा सुनी हुई। जब मन्त्री जी ने देखा कि मामला बढ़ रहा है और मारपीट हो जाने की सम्भावना है तब वह चिल्ला कर बोले---'सज्जनो, रंग की जगह रंगरेज चलाने का कार्य कुछ ठीक नहीं रहा। अतः अगले साल कोई दूसरी युक्ति सोची जायगी।"

"अरे साहब, आप इनको कुछ नहीं कहते जिन्होंने सब काम बिगाड़ दिए। मुफ्त में हमारी पत्नी की धोती रग जाती।"

मन्त्री जी बोले--"खैर अब जो हो गया सो हो गया। यदि आपका ऐसा ही खयाल है तो सङ्घ फिर रंगरेज को भेज कर धोतियाँ रंगवा देगा अच्छा अब प्रमेले का कार्यक्रम होना चाहिए।"

"प्रमेले का कार्यक्रम तो स्वतः ही हो गया।" एक सदस्य ने कहा।

"हाँ, यह तो आपका कहना ठीक है। मारपीट तक की नौबत आ गई। इस कारण यह समझ लिया जाय कि प्रमेला भी हो गया।"

"बेशक, और खूब हुआ। साल भर का त्योहार आनन्दपूर्वक समाप्त हुआ। इसके लिए मन्त्री जी को बधाई देना चाहिए।"

मन्त्री जी बोले---"साथ ही जितने प्रगतिशील सङ्घ अन्य-अन्य