पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१९

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“इस अवसर के लिए तो महाराज की स्पीच तैयार हो गई होगी।"

"अवश्य हो गई होगी।"

"छपवा ली गई है क्या?"

"यह नहीं कहा जा सकता। महाराज अपने साथ ही लायँगे।"

"हूँ! खैर जो भी हो, समारोह शान का होगा।"

"इसमें कोई सन्देह नहीं।"

इसी समय एक अष्टादश वर्षीय युवती जिसकी वेश-भूषा अप-टू-डेट थी कमरे में प्रविष्ट हुई। वह आकर वर्मा जी के निकट बैठ गई। वर्मा जी बोले—"यह मेरी कन्या सुनन्दा है। इसने इस वर्ष बी॰ ए॰ में प्रवेश किया है।"

सुनन्दा गेहुँए रंग की लड़की थी। नखशिख भी साधारण था। उसके हाव भाव में कुछ पुरुषत्व था।

वर्माजी के यहाँ दो दिन जाने पर मि॰ सिनहा को ज्ञात हुआ कि सुनन्दा उनकी ओर अधिक आकर्षित होती है। यह ज्ञात होने पर मि॰ सिनहा मन ही मन मुस्कराये। सुनन्दा की ओर उनका आकर्षण बिल्कुल नहीं था प्रत्युत वह उससे अलग-अलग रहने की चेष्टा करते थे।

सहसा मि॰ सिनहा को कुछ ध्यान पाया। उस ध्यान के पाते ही उन्होंने सुनन्दा के प्रति अपना व्यवहार बदल दिया। अब वह उससे खूब घुल-घुलकर वार्तालाप करने लगे। उसके साथ घूमने-फिरने भी जाने लगे। तीन चार दिन में ही उन्होंने सुनन्दा से यथेष्ट घनिष्टता उत्पन्न कर ली।

अब उद्घाटन समारोह के केवल दो दिन रह गये थे।

संध्या समय मि॰ सिनहा बैठे सुनन्दा से वार्तालाप कर रहे थे। इसी समय वह बोले—"महाराज कल आ रहे हैं!"

"हाँ, कल आ जायँगे—ऐसा समाचार है।"

सुनन्दा ने कहा।

"ठहरेंगे तो यहीं।"

"हाँ! उनके ठहरने के लिए सब प्रबन्ध कर लिया गया है।"