पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/३२

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थे। दो तख्त आने-जाने वालों के लिए बिछे हुए थे। इनके अतिरिक्त कुछ मोढ़े तथा लकड़ी और लोहे की कुर्सियां भी रक्खी हुई थीं।

कामतासिंह के पास कई आदमी बैठे हुए थे कुछ मोढ़ों और कुर्सियों पर तथा कुछ तख्त पर। ठाकुर साहब के बगल में उन्हीं के तख्त पर एक शिकारी कुत्ता अपने अगले पैर फैलाये तथा उन पर मुँह रक्खे चुपचाप बैठा था। ठाकुर साहब अपना बायाँ हाथ उस पर फेर रहे थे।

ठाकुर साहब की वयस ४० वर्ष के लगभग थी। हृष्ट-पुष्ट, दीर्घ-काय तथा बलवान व्यक्ति जान पड़ते थे। मुख पर कर्कशता, आँखें कुछ उबली हुई तथा आरक्त! एक अधेड़ सज्जन कह रहे थे—"आप कहीं जाया करें। तो हाथी पर जाया करें।"

"सो तो हम जाते ही हैं, परन्तु सच्ची बात तो यह है कि जब तक उसकी मरजी न होगी कोई बाल बाँका नहीं कर सकता।"

"यह तो पक्की बात है ठाकुर!" दो-तीन व्यक्ति बोल उठे।

अधेड़ सज्जन बोले—"यह तो हई है, इसमें कोई क्या कह सकता है; परन्तु उपाय करना भी आवश्यक है।"

"सो क्यों नहीं! उपाय न करे और भगवान को दोष दे—वही कहावत है कि 'चलनी में दूध दुहै और करम को दोष दे।"

"सो उपाय तो हम रखते हैं। यदि कहीं हम अकेले भी पड़ जायँ और यह शिकार हमारे साथ हो तो दस-बारह लठैत हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"

"यह बात तो है ठाकुर! यह शिकारी बड़ा होशियार है। कुत्ते सभी होशियार होते हैं, पर यह शिकारी बड़ा बेढब है। कोई आपकी तरफ जरा घूर कर भी देखता है तो यह चौकन्ना हो जाता है।

"उस दिन एक आसामी आया, वह हमसे बात करते-करते जरा जोर से बोलने लगा—सो बस इसने त्योरी बदली। इसके त्योरी बदलते ही आसामी का बोल बन्द हो गया—फिर वह जोर से नहीं बोला।"