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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/३४

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"पाजी तो खैर हई है। सामने नहीं आता—छिपे छिपे वार करना चाहता है। इसी मारे उससे खटका है। सामने आकर वार करने वाले से खटका नहीं होता। खटका तो इन नागों से है जो छिपकर काटना चाहते हैं।"

"यही बात है ठाकुर!"

( २ )

उधर ठाकुर ध्यानसिंह कामतासिंह के अन्यतम शत्रु थे। छोटे जमींदार थे। कामतासिंह के मारे उनकी जमींदारी मिट्टी हो रही थी। उनका कुछ भी प्रभाव नहीं था। खास उनकी ही जमींदारी के आदमी उनकी अवहेलना करते थे। कोई काम पड़ता था तो कामतासिंह के आदमी उनकी जमींदारी के आदमियों को बेगार में पकड़ ले जाते थे। न ध्यानसिंह में इतनी शक्ति थी कि वह कुछ हस्तक्षेप करें और न गांव वाले ही उनके कहने से विरोध करने को उद्यत होते थे। बल्कि प्रायः वे स्वच्छा से ही ध्यानसिंह के रोकते रहने पर भी कामतासिंह के काम पर चले जाते थे।

कोई पारस्परिक झगड़ा होता था तो उसका भी न्याय कामतासिंह से ही कराते थे ध्यानसिंह से बात भी न करते थे। यद्यपि कामतासिंह बहुधा न्याय के बहाने अन्याय ही करते थे, परन्तु तब भी गांव वाले कामतासिंह के पास जाते थे।

कामतासिंह का इतना आतङ्क, इतना प्रभाव ध्यानसिंह को असह्य हो रहा था। वह मन ही मन भुना करते थे, परन्तु विवश थे।

दोपहर का समय था। ध्यानसिंह अपने घर के बाहरी भाग में बैठे हुए थे। इस समय वह अकेले थे। इसी समय उनके पास एक २८, २९ वर्ष का हृष्ट-पुष्ट कसरती जवान पहुँचा उसे देखकर ध्यानसिंह बोले—"क्या है रामचरन? कैसे आये?"

रामचरण उनके सामने उकड़ूं बैठ गया और बोला—"आपके पास फरियाद लाये हैं, मालिक!"