धारा बह रही थी। रामचरण को छोड़कर वह लौटा—थोड़ी दूर चला और गिर पड़ा, फिर उठकर चला फिर गिरा इस प्रकार तीन बार
गिर उठकर वह कामतासिंह से तीन गज की दूरी पर पहुँच गया। दोनों लट्ठबन्द हक्का-बक्का से कामतासिंह के पास खड़े थे। सहसा एक
उनमें से बोला—"यह तो ठण्डे हो गये। जल्दी जाकर गाँव में खबर करो।"
वह आदमी उधर गया। उधर शिकारी पेट के बल घिसट कर कामतासिंह की लाश की ओर जाने लगा। खड़ा हुआ व्यक्ति मन्त्रमुग्ध की भांति 'शिकारी' की ओर ताक रहा था।
अब कामतासिंह की लाश शिकारी से एक गज की दूरी पर रह गई थी। शिकारी शिथिल होकर निश्चेष्ट हो गया। कुछ क्षण तक वह पड़ा रहा। उस व्यक्ति ने समझा कि 'शिकारी' भी समप्त होगया। परन्तु सहसा शिकारी ने अपना अन्तिम बल लगाया। दो झटकों में वह घिसट कर कामतासिंह की लाश के निकट पहुँच गया। लाश के निकट पहुँच कर उसने लाश की छाती पर अपना मुँह रख दिया और इसी समय उसके प्राण पखेरू उड़ गये।