"हाँ! खूब धूम से मनायेंगे।"
"इस बार कुछ नवीनता होनी चाहिए।"
"कैसी नवीनता! झाँकी में नवीनता?"
"झाँकी में तो कुछ न कुछ नवीनता हो ही जाती है। कीर्त्तन में कुछ नवीनता होनी चाहिए।"
"कीर्त्तन में क्या नवीनता हो सकती है—समझ में नहीं आता।"
"इस बार कोई कीर्त्तन करने वाली मण्डली बुलवाई जाय!—की मण्डली के बड़े नाम हैं, ऐसा कीर्त्तन करते हैं कि आनन्द आ जाता है।"
"तो क्या वह मण्डली बुलवाई जाय?"
"मेरी तो यही सम्मति है।" ढोल बजाने वाला बोला। "उनके साथ ढोलक बजाने वाला है! क्या ढोलक बजाता है—वाहवा! कमाल करता है। जी चाहता है खाली ढोलक ही सुना करो।"
"उनके साथ सभी आदमी अच्छे हैं। बाजा बजाने वाला क्या मामूली है?"
"वह भी बहुत बढ़िया है।"
रायसाहब बोले—"अच्छा कल उनको लिखेंगे, पूरा पता मालूम है?"
"हाँ मालूम है। लेकिन चिट्ठी से काम न होगा। चिट्ठी आने-जाने में देर हो जाएगी और तब तक सम्भव है कोई दूसरा उसे हथिया ले। इसलिए किसी आदमी को भेज दीजिए। वह जाकर बयाना दे आवे।"
यह राय अन्य लोगों को भी पसन्द आई। राय साहब ने यह राय मान ली। दूसरे दिन एक व्यक्ति मण्डली ठीक करने के लिए भेज दिया गया।
पाँच दिन पश्चात् वह आदमी लौटा। रायसाहब ने पूछा—"कहो ठीक कर आये?"
"ठीक क्या कर आया! उनके तो बड़े मिजाज हैं। सौ रुपये रोज