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रघुवंश।


पाँचों इन्द्रियों से सम्बन्ध रखने वाले जितने विषय-सुख हैं उनके सेवन में अग्निवर्ण चूर रहने लगा। बिना विषय-सेवा के एक क्षण भी रहना उसके लिए असह्य हो गया। दिन रात वह रनिवास ही में पड़ा रहने लगा।

अपनी प्रजा को अग्निवर्ण बिलकुल ही भूल गया। दर्शन के लिए उत्सुक प्रजा की उसने कुछ भी परवा न की। जब कभी मन्त्रियों ने उस पर बहुत ही दबाव डाला तब, उनके लिहाज़ से, यदि उसने अपनी दर्शनो'त्कण्ठ प्रजा को दर्शन दिया भी तो खिड़की के बाहर सिर्फ अपना एक पैर लटका दिया; मुख न दिखलाया। नखों की लालिमा से विभूषित-बालसूर्य की धूप छुये हुए कमल के समान-उस पैर को ही नमस्कार करके उसके सेवकों को किसी तरह सन्तोष करना पड़ा।

खिले हुए कमलों से परिपूर्ण बावलियों में प्रवेश करके, उसकी रानियों ने, जल-क्रीड़ा करते समय, कमलों को बेतरह झकझोर डाला। उनके साथ वहीं, उन्हीं बावलियों में, बने हुए क्रीड़ा-गृहों में अग्निवर्ण ने आनन्द से जल-विहार किया। जल-क्रीड़ा करने से उसकी रानियों की आँखों में लगा हुआ अञ्जन और ओठों पर लगा हुआ लाख का रङ्ग धुल गया। अतएव उनके मुख अपने स्वाभाविक भाव को पहुँच कर और भी शोभनीय हो गये। उनकी स्वाभाविक सुन्दरता ने अग्निवर्ण को पहले से भी अधिक मोह लिया।

जल-विहार कर चुकने पर अग्निवर्ण ने मद्यपान की ठानी। अतएव, हाथी अपनी हथिनियों को साथ लिये हुए जिस तरह सरोजिनी-समुदाय के पास जाता है उसी तरह वह भी अपनी रानियों को साथ लिये हुए उस जगह गया जहाँ मद्यपान का प्रबन्ध पहले ही से कर रक्खा गया था। वहाँ, एकान्त में, उसने जी भर कर अत्यन्त मादक मद्य पिया। उसने उसके प्याले अपने हाथ से रानियों को भी पिलाये। रानियों ने भी उसे अपने हाथ से मद्य पिला कर उसके प्रेम का पूरा पूरा बदला चुकाया।

अग्निवर्ण ने वीणा बजाने में हद कर दी । वीणा से उसे इतना प्रेम हुआ कि उसने उस मनोहर स्वर वाली को एक क्षण के लिए भी गोद से दूर न होने दिया। वीणा ही क्यों, और बाजे बजाने में भी उसने बड़ी निपुणता दिखाई। जिस समय नर्तकियाँ नाचने-गाने लगतीं उस समय