पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१०३

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चौथा सर्ग।

का कोई कारण नहीं। उनके मन में उत्पन्न हुए ये विचार उनकी बाहरी चेष्टाओं से साफ़ साफ़ झलकने लगे।

भोजपत्रों में लग कर खर-खर शब्द करने वाली, बाँसों के छेदों में घुस कर कर्ण-मधुर-ध्वनि उत्पन्न करने वाली, और गङ्गा के प्रवाह को छू कर आने के कारण शीतलता साथ लाने वाली वायु ने, मार्ग में, राजा रघु की ख़ूब ही सेवा की। पर्व्वत के ऊपर चलने वाली उस शीतल, मन्द, सुगन्धित पवन ने रघु के मार्ग-श्रम का बहुत कुछ परिहार कर दिया। हिमालय पर सुरपुन्नाग, अर्थात् देवकेसर, के वृक्षों की बड़ी अधिकता है। उन्हीं के नीचे पत्थरों की शिलाओं पर कस्तूरी-मृग बैठा करते हैं। इससे वे शिलायें कस्तूरी की सुगन्धि से सुगन्धित रहती हैं। उन्हीं शिलाओं पर रघु की सेना ने विश्राम करके अपनी थकावट दूर की। वहाँ पर रघु के हाथी देवदारु के पेड़े से बाँध दिये गये। उस समय हाथियों की गर्दनों पर पड़ी हुई चमकीली ज़ञ्जीरों पर, आस पास उगी हुई जड़ी-बूटियाँ प्रतिबिम्बित होने लगीं। इससे वे ज़ञ्जीरे देदीप्यमान हो उठीं—उनसे प्रकाश का पुञ्ज निकलने लगा। इस कारण उन ओषधियों ने उस अपूर्व्व सेनानायक रघु के लिए बिना तेल की मशालों का काम दिया।

कुछ समय तक विश्राम करने के अनन्तर, रघु ने उस स्थान को भी छोड़ कर आगे का रास्ता लिया। उसके चले जाने पर पर्व्वत-वासी किरात लोग वह जगह देखने आये जहाँ पर, कुछ देर पहले, सेना के डेरे लगे थे। आने पर उन्होंने देखा कि जिन देवदारु-वृक्षों से रघु के हाथी बाँधे गये थे उनकी छाल, हाथियों के कण्ठी की रस्सियों और ज़ञ्जीरों की रगड़ से, कट गई है। उस कटी और रगड़ी हुई छाल को देख कर उन्होंने रघु के हाथियों की उँचाई का अन्दाज़ा लगाया।

हिमालय पर्व्वत पर उत्सव-सङ्केत नामक पहाड़ी राजाओं के साथ रघु का बड़ा ही भयङ्कर युद्ध हुआ। रघु की सेना के द्वारा छोड़े गये विषम बाण, और उन राजाओं की सेना के द्वारा गोफन में रख कर फेंके गये पत्थर, परस्पर इतने ज़ोर से टकराये कि उनसे आग निकलने लगी। रघु ने अपने भीषण बाणों की वर्षा से उन राजाओं के युद्ध-सम्बन्धी सारे उत्साह का नाश कर दिया। उनके गर्व को चूर्ण कर के रघु ने अपने भुजबल की बदौलत प्राप्त हुए जयरूपी यश के गीत किन्नरों तक से गवा कर छोड़े। किन्नरों तक ने उसे शाबाशी दी—उन्होंने ने भी उसका यशोगान कर के उसे प्रसन्न किया। फिर, उन परास्त हुए पहाड़ी राजाओं का