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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१०८

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रघुवंश।

बच्चे देती हैं तब ऋषि लोग उनके बच्चों की बेहद सेवा-शुश्रषा करते हैं। आश्रम के आस पास सब कहीं जङ्गल है। उसमें साँप और बिच्छू आदि विषैले जन्तु भरे हुए हैं। उनसे बच्चों को कष्ट न पहुँचे, इस कारण ऋषि प्रायः उन्हें अपनी गोद से नहीं उतारते। उत्पन्न होने के बाद, दस-बारह दिन तक, वे उन्हें रात भर अपने उत्सङ्ग ही पर रखते हैं। अतएव उनके नाभि-नाल ऋषियों के शरीर ही पर गिर जाते हैं। परन्तु इससे वे ज़रा भी अप्रसन्न नहीं होते। जब ये बच्चे बढ़ कर कुछ बड़े होते हैं तब यज्ञ आदि बहुत ही आवश्यक क्रियाओं के निमित्त लाये गये कुशों को भी वे खाने लगते हैं। परन्तु, उन पर ऋषियों का अत्यन्त स्नेह होने के कारण, वे उन्हें ऐसा करने से भी नहीं रोकते। उनके धार्मिक कार्य्यों में चाहे भले ही विघ्न आ जाय, पर मृगों के छौनों की इच्छा का वे विघात नहीं करना चाहते। आप की यह स्नेह-संवर्धित हरिण-सन्तति तो मज़े में है? उसे कोई कष्ट तो नहीं?

"आपके तीर्थ-जलों का क्या हाल है? उनमें कोई ख़राबी तो नहीं? वे सूख तो नहीं गये? पशु उन्हें गँदला तो नहीं करते? इन तीर्थ-जलों को—इन तालाबों और बावलियों को—मैं आपके बड़े काम की चीज़ समझता हूँ। यही जल नित्य आपके स्नानादि के काम आते हैं। अग्निष्वात्तादि पितरों का तर्पण भी आप इन्हीं से करते हैं। इन्हीं के किनारे, रेत पर, आप अपने खेतों की उपज का षष्ठांश भी, राजा के लिए, रख छोड़ते हैं।

'बलि-वैश्वदेव के समय यदि कोई अतिथि आ जाय तो उसे विमुख जाने देना मना है। अतएव जिस जङ्गली तृण-धान्य (साँवा, कोदो आदि) से आप अपने शरीर की भी रक्षा करते हैं और अतिथियों की क्षुधा भी शान्त करने के लिए सदा तत्पर रहते है उसे, भूल से छूट आये हुए, गाँव और नगर के पशु खा तो नहीं जाते?

"सब विद्याओं में निष्णात करके आप के गुरु ने आप को गृहस्थाश्रम-सुख भोगने के लिए क्या प्रसन्नता-पूर्वक आज्ञा दे दी है? ब्रह्मचर्य्य, वानप्रस्थ और संन्यास—इन तीनों आश्रमों पर उपकार करने का सामर्थ्य एक मात्र गृहस्थाश्रम ही में है। आपकी उम्र अब उसमें प्रवेश करने के सर्वथा योग्य है। आप मेरे परम पूज्य हैं। इस कारण सिर्फ़ आपके आगमन से ही मुझे आनन्द की विशेष प्राप्ति नहीं हो सकती। यदि आप दया करके मुझ से कुछ सेवा भी लें तो अवश्य मुझे बहुत कुछ आनन्द और सन्तोष हो सकता है। अतएव, आप मेरे लिए कोई काम बतावें—कुछ तो आज्ञा करें? हाँ, भला यह तो कहिए कि आप ने जो मुझ पर यह कृपा की है