पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/११०

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रघुवंश।

गुरु-दक्षिणा तो मुझे कहीं से लानी ही होगी, और, आप से तो उसके मिलने की आशा नहीं। अतएव अब मैं और कहीं से उसे प्राप्त करने की चेष्टा करूँगा। आपको इस सम्बन्ध में मैं सताना नहीं चाहता। सारे संसार को जल-वृष्टि से सुखी करके शरत्काल को प्राप्त होने वाले निर्जल मेघों को, पतङ्ग-योनि में उत्पन्न हुए चातक तक, अपनी याचनाओं से, तङ्ग नहीं करते। फिर मैं तो मनुष्य हूँ और गुरु की कृपा से चार अक्षर भी मैंने पढ़े हैं। भगवान् आपका भला करे, मैं अब आप से विदा होता हूँ"।

इतना कह कर महर्षि वरतन्तु का शिष्य कौत्स खड़ा हो गया और वहाँ से जाने लगा। यह देख, राजा रघु ने उसे रोक कर ज़रा देर ठहरने की प्रार्थना की। वह बोला:—

"हे पण्डितवर। आप यह तो बता दीजिए कि गुरु-दक्षिणा में कौनसी चीज़ आप अपने गुरु को देना चाहते हैं और कितनी देना चाहते हैं"।

यह सुन कर, इतने बड़े विश्वजित् नामक यज्ञ को यथाविधि करने पर भी जिसे गर्व छू तक नहीं गया, और, जिसने ब्राह्मण आदि चारों वर्णों तथा ब्रह्मचर्य्य आदि चारों आश्रमों की रक्षा का भार अपने ऊपर लिया है उस राजा रघु से, उस चतुर ब्रह्मचारी ने अपना गुरु-दक्षिणा-सम्बन्धी प्रयोजन, इस प्रकार, साफ़ साफ़ शब्दों में, कहना आरम्भ किया। उसने कहा:—

"जब मेरा विद्याध्ययन हो चुका—जो कुछ मुझे पढ़ना था सब मैं पढ़ चुका—तब मैंने आचार्य वरतन्तु से प्रार्थना की कि आप कृपा करके गुरु-दक्षिणा के रूप में मेरी कुछ सेवा स्वीकार करें। परन्तु महर्षि के आश्रम में रह कर मैंने बड़े ही भक्ति-भाव से उनकी सेवा की थी। इससे वे मुझ पर पहले ही से बहुत प्रसन्न थे। अतएव, बिदा होते समय, मेरी प्रार्थना के उत्तर में उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि तेरी अकृत्रिम भक्ति ही से मैं सन्तुष्ट हूँ मुझे गुरु-दक्षिणा न चाहिए। परन्तु मैंने हठ की। गुरु-दक्षिणा स्वीकार करने के लिए मेरे बार बार प्रार्थना करने पर आचार्य्य को क्रोध हो आया। इस कारण, मेरी दरिद्रता का कुछ भी विचार न करके, उन्होंने यह आज्ञा दी कि मैंने जो तुझे चौदह विद्यायें सिखाई हैं उनमें से एक एक विद्या के बदले एक एक करोड़ रुपया ला दे। यही चौदह करोड़ रुपया माँगने के लिए मैं आप के पास आया था। परन्तु, मेरा सत्कार करने के समय आपने मिट्टी के जिन पात्रों का उपयोग किया उन्हें देख कर ही मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि इस समय आप के पास प्रभुता का सूचक "प्रभु" शब्द मात्र शेष रह गया है। सम्पत्ति के नाम से और कुछ भी आपके