इन्दुमती और अज—निःसन्देह रति और मन्मथ के अवतार हैं। यदि ऐसा न होता तो इतनी अप्रगल्भ होने पर भी यह इन्दुमती, हज़ारों राजाओं में से अपने ही अनुरूप इस राजकुमार को किस तरह ढूँढ़ निकालती। बात यह है कि मन को पूर्व-जन्म के संस्कारों का ज्ञान बना रहता है। इन्दुमती और अज का, पूर्व-जन्म में, ज़रूर सङ्ग रहा होगा। उसी संस्कार की प्रेरणा से इन्दुमती ने अज को ही फिर अपना पति बनाया"।
इस तरह पुरवासिनी स्त्रियों के मुख से निकले हुए, कानों को अलौकिक आनन्द देने वाले, वचन सुनते सुनते अज-कुमार राजा भोज के महल के पास पहुँच गया। जा कर उसने देखा कि द्वार पर जल से भरे कलश रक्खे हुए हैं। केले के खम्भ गड़े हुए है। बन्दनवार बँधे हुए हैं। अनेक प्रकार की मङ्गलदायक वस्तुओं और रचनाओं से महल की शोभा बढ़ रही है। द्वार पर पहुँच कर अज-कुमार अपनी सवारी की हथिनी से उतर पड़ा। कामरूप-देश के राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे महल के भीतर ले चला। वहाँ राजा भोज के दिखाये हुए चौक में उसने प्रवेश क्या किया मानों राज-मन्दिर में एकत्र हुई स्त्रियों के मन में ही वह घुस गया—राजा-भोज के मन्दिर में प्रवेश होने के साथही स्त्रियों के मन में भी उसका प्रवेश हो गया। राज-मन्दिर के चौक में एक बड़ाही मूल्यवान् सिंहासन रक्खा हुआ था। उसी पर भोज-नरेश ते अज को आदरपूर्वक बिठाया। फिर उसने मधुपर्क पार अर्घ्य आदि से उसकी पूजा की। तदनन्तर थोड़े से रमणीय रत्न और रेशमी कपड़ों का एक जोड़ा उसने अज के सामने रक्खा। इस समय विदर्भ-नगर की स्त्रियाँ, अज पर, अपने कटाक्षों की वर्षा करने—उसे तिरछी नज़रों से देखने—लगीं। दी गई चीज़ों को अज ने स्त्रियों के कटाक्षों के साथही स्वीकार किया। उसने उन चीज़ों को भी सहर्ष लिया और स्त्रियों के कटाक्षों पर भी, मनही मन, हर्ष प्रकट किया। इस विधि के समाप्त हो जाने पर, रेशमी वस्त्र धारण किये हुए अज को, राजा भोज के चतुर और नम्र सेवकों ने, वधू के पास पहुँचाया। उस समय ऐसा मालूम हुआ जैसे नये चन्द्रमा के किरण-समूह ने, स्वच्छ फ़ेन से परिपूर्ण समुद्र को, तट की भूमि के पास पहुँचा दिया हो। वहाँ, राजा भोज के परम-पूज्य और अग्नि-समान तेजस्वी पुरोहित ने घी, साकल्य और समिधा आदि से अग्नि की पूजा की। हवन हो चुकने पर, उसी अग्नि को विवाह का साक्षी करके, उसने अज और इन्दुमती का ग्रन्थिबन्धन कर दिया—दोनों को वैवाहिक सूत्र में बाँध दिया। पासही उगी हुई अशोकलता के कोमल पल्लव से आम के पल्लव का संयोग होने से आम जैसे अत्यधिक शोभा पाता है वैसेही वधू इन्दुमती के हाथ को