पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२३
सोलहवाँ सर्ग।

पड़ा। इस जगह हंस बहुत थे। कुश की सेना को उतरते देख वे वहाँ न ठहर सके। डर के मारे वे आकाश को उड़ गये। जिस समय वे अपने पंख फैला कर उड़े उस समय वे, राजा कुश के ऊपर, बिना यत्न के ही, चमर सा करते चले गये। नावों से हिलते हुए जल वाली गङ्गाजी को पार करके कुश ने भक्तिभावपूर्वक उसकी वन्दना की। उसे, उस समय, इस बात का स्मरण हो आया कि इसी भागीरथी के पवित्र जल की बदौलत कपिल-मुनि के कोपानल से भस्म हुए उसके पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।

इस तरह कई दिन तक चलने के बाद नरनाथ कुश सरयू के तट पर पहुँच गया। वहाँ उसे यज्ञकर्त्ता रघुवंशी राजाओं के गाड़े हुए सैकड़ों यज्ञ-स्तम्भ, वेदियों पर खड़े हुए, देख पड़े। कुश के कुल की राजधानी अयोध्या के उपवन वहाँ से दूर न थे। उन उपवनों की वायु ने देखा कि कुश थका हुआ है और उसकी सेना भी श्रम से क्लान्त है। अतएव, सरयू की शीतल लहरों को छूकर और फूलों से लदे हुए वृक्षों की शाखाओं को हिला कर वह आगे बढ़ कर कुश से मिलने के लिए दौड़ आई।

पुरवासियों के सखा, शत्रुओं के हृदयों को बाणों से छेदने वाले, अपने कुल में ध्वजा के सदृश उन्नत, महाबली कुश ने, उस समय, फहराती हुई पताकावाली अपनी सेना को अयोध्या के इर्द गिर्द उतार दिया। सेना को, इस प्रकार, आराम से ठहरा कर उसने असंख्य सामग्री इकट्ठी कराई। फिर उसने हज़ारों कारीगर बढ़ई, लुहार, मेसन, चित्रकार आदि बुला कर उजड़ी हुई अयोध्या का जीर्णोद्धार करने की उन्हें आज्ञा दी। स्वामी की आज्ञा पाकर उन्होंने अयोध्यापुरी को—जल बरसा कर ग्रीष्म की तपाई हुई भूमि को बादलों की तरह—फिर से नई कर दिया। तदनन्तर, उस रघुवंशी वीर ने सैकड़ों सुन्दर सुन्दर देव-मन्दिरों से सुशोभित पुरी में प्रवेश करने के पहले, वास्तुविधि के ज्ञाता विद्वानों को बुलाया। उन्होंने, राजा की आज्ञा से, पहले तो उपवास किया; फिर, पशुओं का बलिदान देकर यथाशास्त्र पुरी की पूजा की।

शास्त्र में निर्दिष्ट नियम के अनुसार, वन और पूजन आदि हो चुकने पर, कुश ने अयोध्या के राज-महल में—प्रेयसी के हृदय में प्रेमी के सदृश-प्रवेश किया। अपने मन्त्री, सेनापति, कोशाध्यक्ष आदि बड़े बड़े अधिकारियों को भी, उनकी प्रधानता और पद के अनुसार, बड़े बड़े महल और मकान देकर, उसने उन सब का भी यथोचित सम्मान किया। घुड़सालों में घोड़े बाँध दिये गये। गजसालों में, यथानियम गड़े हुए