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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/८४

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रघुवंश।


सृष्टि की रचना करना तो ब्रह्मा का काम है, पर उसकी रक्षा करना उसका काम नहीं। और, रक्षा न करने से कोई चीज़ बहुत दिन तक रह नहीं सकती। इसीसे जब विष्णु का सत्यगुणात्मक अवतार हुआ तब ब्रह्मा को यह जान कर अपार सन्तोष हुआ कि मेरी रची हुई सृष्टि अब कुछ दिन तक बनी रहेगी। इसी तरह विशुद्धजन्मा रघु के जन्म से, मर्यादा के पालक और प्रजा के रक्षक राजा दिलीप को भी परम सन्तोष हुआ। पुत्रप्राप्ति के कारण उसने अपने वंश को कुछ काल तक स्थायी समझा। उसे दृढ़ आशा हुई कि मेरे वंश के डूबने का अभी कुछ दिन डर नहीं।

यथासमय रघु का चूडाकर्म्म हुआ। तदनन्तर उसके विद्यारम्भ का समय आया। सिर पर हिलती हुई कुल्लियों (जुल्फ़ों) वाले अपने समवयस्क मन्त्रिपुत्रों के साथ वह पढ़ने लगा और—नदी के द्वारा जैसे जलचरजीव समुद्र के भीतर घुस जाते हैं उसी तरह वह—वर्णमाला याद करके उसके द्वारा शब्दशास्त्र में घुस गया। कुछ समय और बीत जाने पर उसका विधिपूर्वक यज्ञोपवीत हुआ। तब उस पिता के प्यारे को पढ़ने के लिए बड़े बड़े विद्वान् अध्यापक नियत हुए। बड़े यत्न और बड़े परिश्रम से वे उसे पढ़ाने लगे। उनका वह यत्न और वह परिश्रम सफल भी हुआ। और, क्यों न सफल हो? सुपात्र को दी हुई शिक्षा कहीं निष्फल जाती है? दिशाओं का स्वामी सूर्य जिस तरह पवन के समान वेगगामी अपने घोड़े की सहायता से यथाक्रम चारों दिशाओं को पार कर जाता है, उसी तरह, वह कुशाग्रबुद्धि रघु, अपनी बुद्धि के शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण और धारण आदि सारे गुणों के प्रभाव से, महासागर के समान विस्तृत चारों विधाओं को क्रम क्रम से पार कर गया। धीरे धीरे वह आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्ड-नीति, इन चारों विद्याओं में व्युत्पन्न हो गया। यज्ञ में मारे गये काले हिरन का चर्म पहन कर उसने मन्त्र-सहित आग्नेय आदि अस्त्रविद्यायें भी सीख लीं। परन्तु इस अस्त्रशिक्षा के लिए उसे किसी और शिक्षक का आश्रय नहीं लेना पड़ा। इसे उसने अपने पिता ही से प्राप्त किया। क्योंकि उसका पिता, दिलीप, केवल अद्वितीय पृथ्वीपति ही न था, पृथ्वी की पीठ पर वह अद्वितीय धनुषधारी भी था।

बड़े बैल की अवस्था को प्राप्त होनेवाले बछड़े अथवा बड़े गज की स्थिति को पहुँचनेवाले गज—शावक की तरह रघु ने, धीरे धीरे, बाल-अवस्था से निकल कर युवावस्था में प्रवेश किया। उस समय उसके शरीर में गम्भीरता आ जाने के कारण वह बहुत ही सुन्दर देख पड़ने लगा। उसके युवा होने पर उसके पिता ने गोदान-नामक संस्कार कराया। फिर उसका विवाह