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सुल्ताना
रज़ीयाबेगम
वा
रङ्गमहल में हलाहल
(उपन्यास)
पहिला भाग।
श्रीकिशोरीलाल गोस्वामि-लिखित.
"यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्॥"
(सुभाषित)
"ये वो मिसरी की डली है कि नबात इससे करे।
संखिया खाके मरे, इसको ज़बाँ पर न धरे॥"
(दाग़)
]सर्वाधिकार रक्षित.]
श्रीछबीलेलालगोस्वामि-द्वारा
श्रीसुदर्शनप्रेस वृन्दावन में मुद्रित और प्रकाशित.
दूसरी बार १०००)
(मूल्य बारह आने
सन् १९१५ ईस्वी