काम इन्हीं तीनों में से किसी न किसी का है।
निदान, फिर वह नकाबपोश की बातों का जवाब कुछ कड़ाई और कुछ नर्मी के साथ देने लगी; उसने कहा,-
"मैं जिस तरह हो सकेगा, याकूब को अपनी बात मानने के लिये मजबूर करूंगी और उसे अपने काबू में लाऊंगी।"
नकाबपोश,-"उसी तरह प्यारी-! रजीया ! मैं भी तुझे जैसे होगा, अपने काबू में लाऊंगा और तेरे साथ निकाह करूंगा।"
रज़ीया,-"यह कभी नहीं होसकता, चाहे तू ! हरामजादे ! मुझे मार भी डाल।"
नकाबपोश,-"जब कि तेरी किस्मत में रज़ीया ! मरना ही लिखा है तो फिर मैं तुझे मौत के चंगुल से क्यों कर बचा सकता हूं ! मगर नहीं, मैं अपने हाथों को तेरे खूने से न रंगूंगा, चाहे तू मुझे कैसा ही खूखार, ज़ालिम, शोहदा या जो कुछ समझती हो।" रज़ीया,-"तो तू अब मुझे मेरी किस्मत पर छोड़दे।"
मकाबपोश,-"हर्गिज़ नहीं, जब तक कि तू मेरे साथ निकाह न करलेगी, ताज़ीस्त इस मकान के बाहर की हवा तुझे नसीब न होगी और तू यहीं पड़ो पड़ी बगैर दाने पानी. के तड़प तड़प कर मर जायगी।"
यह बात ऐसी थी और इसे उस नकाबपोश ने इस ज़ोर के साथ कहा था कि रज़ीया कड़े दिल की होने पर भी दहल गई, क्योंकि आखिर वह स्त्री ही तो थी । और जब उसने यह बात भलीभांति समझली कि,-'यह ज़िद्दी नकाबपोश अपनी ज़िद से बाज़ न आवेगा, तो उसने दूसरा ढंग निकाला और कहा,-
"तो क्या अब तुम मेरी जान किसी तरह न छोड़ोगे?"
नकाबपोश,-"तुझ जैसी नाज़नी को अपने काबू में पाकर जो छोड़ दे, वह उल्लू ही नहीं, बल्कि उल्लू का इत्र है।"
रज़ीया,-"तो ख़ैर, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है, मगर पहिले तुम मेरे कई सवालों का जवाब दो।"
नकाबपोश,-"खुशी से पूछो, जो सवाल काबिल जवाब होगा, उसका जवाब दिया जायगा।"
रज़ीया,-"यह जगह कौनसी है और कहां पर है?"
नकाबपोश,-"इसके जवाब में मैं फ़कत इतनाही कहूंगा कि यह"