पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/२४

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(दूसरा
 

उस्ताद, उस्तादही है और शागिर्द, शागिर्दही । मगर हां ! इस बात को मैं ज़रूर कबूल करती हूं कि अगर यहां पर कोई शख्स इस जवांमर्द का मुकाबला कर सकता है तो फ़क़त इसका यह शागिद लौंडा ही कर सकता है।"

गुलशन,-"जीहां, हुजूर ! मेरे कहने का भी मतलब फ़कर इतनाही था, फ़र्क सिर्फ लफ़जों का था, मगर बी, सौसन तं बेतरह उलझ पड़ीं।"

रजीया,-"अच्छा, अच्छा, मेरी प्यारी; सहेली गुलशन ! तृ अपना जो छोटा न कर; मैं तेरी दिलश्किनी न होने दूंगी और तेरे ख़ातिरखाह इस लौंडे को भी इनाम दूंगी।

गुलशन,-"हुजूर का बोल बाला होवे; क्यों जहांपनाह ! इस शागिर्दबच्चे का नाम अयूब सुनने में आया था न !

रज़ीया,-"बेशक, तुझे इसका नाम सही याद है।"

सौसन,-"अक्खाह ! बी, गुलशन ने तो इस शख्स का नाम तक बरज़बां कर रक्खा है, जिसकी कि ये तरफ़दार हुई हैं।"

गुलशन,-"तो इसमें मैंने क्या बुरा किया, दोस्त !

सौसन,-"अजी, बी ! यह नहीं; मेरे कहने का मतलब सिर्फ यही है कि जैसे तुमने उस्ताद और शागिर्द को बराबर का बना डाला है, वैसेही अगर नाम भी इन दोनो का करीब करीब एक सा होवे तो निहायत ही मौजू होगा।"

रजीया,-" यह जुमला तूने प्यारी, सौसन ! बड़ा मजेदार कहा; चुनांचे मैं तुझी से पूछती हूं; भला, बतला तो सही कि अयूब के मुकाबले का नाम क्या हो सकता है !"

गुलशन,-"वल्लाह ! हुजूर ने कैसा पेंचीला सवाल किया है ! क्यों बी! सौसन इसे हल कर सकोगी न!!!"

सौसन,-( रज़ीया की ओर देखकर ) " वल्लाह आलम ! हुजूर ने क्या खूब फर्माया है ! सुनिए, सुलताना ! अयूब के जोड़ का नाम महबूब भो हो सकता है, याकूब भी हो सकता है और नजाने क्या क्या हो सकता है, मगर इतना, मैं ज़रूर अर्ज करूंगी कि-(रुककर) ऐ वाह, देखिए, हुजूर ! बल्लाह; क्या ही हाथ की सफ़ाई और मश्शाकी है !!!

इधर आपस में ये सब चुहल की बातें होती थीं कि इतने ही में