सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
(सातवां
रज़ीयाबेगम

औरत और उसके निकाल लानेवाले यार-दोनों को-जीते जी आग में जला दिया गया।

एक मुकदमा किसी रंडी का था । उसकी नौजवान और खूबसूरत लड़की को एक हिन्दू ने, जो पहिले उसके इश्क में मुस- लमान भी होगया था, उस लड़की को मारडाला था । तहक़ीकात होनेपर उस लड़की की लाश के साथ वह शख़्स जिन्दा दरग़ोर किया गया।

एक मुसलमान ने किसी हिन्दू की औरत को ज़बर्दस्ती उसके घर से निकाल लाकर अपने यहां कैद किया था और वह उसका सत बिगाड़ना चाहता था; आख़िर वह पकड़ा जाकर जेल भेजा गया और वह सती फिर अपने पति के घर पहुंचाई गई। इनके अलावे कई चोरी, चमारी और मार पीट के महज़ मामूली मुकद्दमें भी थे, जो बात की बात में फैसल कर दिए गए। यहां तक कि दो एक आदमी कत्ल किए गए, सौ पचास पर कोड़े पड़े, और कुछ ज़रीबाना देकर छूटे, बाकी जेल की हवा खाने भेजे गए । यह नित्यही की लीला थी।

निदान, ज्योंही घड़ियावल ने बारह का गजर बजाया था कि तोपें छूटने और शहनाई बजने लगीं । सब दर्बारी अपनी अपनी जगह पर खड़े हो, झुक झुक कर सलाम करने लगे और बेगम अपनी सहलियों और बांदियों के साथ तख के पीछेवाली खिड़की के रास्ते से महल के अन्दर चली गई और उसके जाने पर दर्वार बर्खास्त हुआ।

आज के इस दर्बार का चरचा सारे शहर में फैला हुआ था और सभी छोटे, बड़े, हिन्दू, मुसलमान, बेगम के अदल इन्साफ़ की बड़ाई करते थे। हां, कोई कोई मुसलमान उसे दीन इस्लाम के बर्खिलाफ बतला कर काफिर भी कहते थे, क्योंकि उसने मुसलमानों के जुल्म से बेचारे हिन्दुओं को जाने बचाई थीं, सभों का ही ऐसा ख़याल न था, क्योंकि जो योग्य और सजन मुसलमान थे, वे बेगम के इस न्याव को सराहते थे।

आज उस मंदिर में बड़ी धूम मची हुई है और सारे शहर के हिन्दू इकट्ठे होकर बेगम साहिबा की मंगल कामना के लिये श्रीहरिकीर्तन' में लगे हुए हैं और प्रसाद बंट रहा है । रौशनी इतनी हुई है कि पर