पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/८६

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(ग्यारहवां
रज़ीयाबेगम।


ज़ोहरा,--( खड़ी हो कर) "अय! हुजूर ! मैं सदके, मैं कुर्बान! अय! तौबः ! सर्कार की बलाएं लूं ! मेरी सर्कार के दुश्मनों का चेहरा आज इस क़दर ग़मगीन क्यों नज़र आता है ? हुजूर मेरे तनोबदन के खून का हर एक कतरा इसी आर्थों में है कि वह अपने तई की ख़िदमत में क्योंकर सर्फ़ होकर खुशी खुशी बिहिश्त हासिल करे।"

बेगम ने ज़ोहरा का हाथ थाम कर उसे बैठाया और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा,-

ज़ोहरा, ज़ोहरा ! मेरी प्यारी, जोहरा! तू यह बात बखूबी जानतो है कि मैं तुझ पर कितनी मिहरबान रहती हूं और तेरे साथ वैसा बर्ताव हर्गिज़ नहीं करती, जैसा कि अक्सर लोग जपने लौंडी गुलामों के साथ किया करते हैं।"

ज़ोहरा,--(बेगम के क़दमों में अपना सिर लगा कर ) “हुजूर ! खुदा करे यह लौंडो इसी कदम के साये तले अपनी जिन्दगी के दिन पूरे करे और बिहिश्त में भी हुजूर ही की कदमखोसी हासिल कर सके।"

रजीया,—( उसका सिर उठाकर ) "जोहरा! प्यारी, ज़ोहरा मुछे तेरी बफ़ादारी पर पूरा एतकाद है और यही वजह है कि इस वक्त मैंने अपनी सहेलियों को यहांसे टाल कर तेरे सामने अपने दिल का पर्दा हटाना चाहा है।"

ज़ोहरा, 'हुजूर! का जो हुक्म हो, उसे लौंडी बसरोचश्म बजा ला सकती है और इस खूबी के साथ कि हवा को भी उसकी ख़बर न हो।"

रज़ीया,- बेशक ! तू इसी लायक है, तभी तो मेरा दिल मुझ से बारबार यों कह रहा है कि,-' रज़ीया! अगर तेरा काम कोई बखूबी अंज़ाम दे सकता है तो फ़क़त तेरी बफ़ादार लौंडी ज़ोहरा।' हां! अगर तूने मेरा वह काम किया तो तू यकीन कर कि तुझे मैं अपनी छोटी बहिन के बराबर समझगी और बड़ी शान शौकत के साथ शाहीमहल में रहेगी । और मेरे बाद अगर महलसरा की किसी औरत की इज़्ज़त की जायगी तो फ़क़त तेरी।"

धन्य, कन्दर्प ! तुम्हारा प्रताप धन्य है कि तुम जिससे चिपटते. हो, उसका निजत्व पहिले ही हर लेते हो!!!