पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४०७

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फेरै तब सेतता सियाही लेख जातक के, स्नातक के अंग राग-रंग है जगति है। कहै रतनाकर तिहारी मधुराई कलि- दाँतनि की पाँतिनि खदाई है खगति है ॥ सीतल सुखारौ जन-हीतल सदाई करै, रावरे प्रताप की अमाप गूढ़ गति है। सीत सौं तिहारे ताप-भीत जम-दूत रहैं, आप सौं अनोखी आगि पाप मैं लगति है ॥३७॥ न्हाइ गंगधार पाइ आनँद अपार जब, करत विचार महा महिमा बखानी करें। कहै रतनाकर उठति अवसेरि यहै, बेर बेर पैयै क्यौँ जनमि इहिँ पानी कौँ । पंच की कहा है करैं पातक प्रपंच सबै, रंच हूँ ड न जम-जातना कहानी कौँ । सुरसरि-पंथ ओर पारत ही तौहूँ पाय, आवति चलायै हाय मुक्ति अगवानी कौ ॥३८॥ पारे दूरि ताप जे अमाप महि-मंडल के, मारतंड है सो नभ-पंथ परसत हैं। कहै रतनाकर गिरीस सीस सनिधि तौ, पाई रजनीस सुधाधीस सरसत हैं।