पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४८५

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गावै गीत अंगना प्रवीन कर बीन लिए, आनंद-उमंग-भरी रंग के भवन मैं । कहै रतनाकर जवानी की उमंग होइँ, तंग होई बसन सजीले तने तन मैं ॥ सुखद पलँग होइँ दुहरी दुलाई लगी, आनँद अभंग तब होइ अगहन में। नूपुर के संग संग बाजत मृदंग हो', रंग होइ नैननि तरंग होइ मन मैं ॥८॥