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रवीन्द्र-कविता-कानन
 

वाक्य में रवीन्द्रनाथ के हृदय की विशालता जाहिर है। इसकी पुष्टि में वे एक युक्ति भी देते हैं। वह यह कि—"जब मेरे लिये तुम्हारी पुकार होगी तब उसे मैं कसे छिपाऊँगा?—मेरी बातें और मेरे कार्य खुद तुम्हारी आराधना प्रकट कर देंगे।" प्रभु की कृपा प्राप्ति का संवाद दूसरों को कैसी विचित्र युक्ति से दिया जा रहा है।