पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४

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आयुष्मान् हरिशङ्कर विद्यार्थी को- प्यारे हरि, यह मेरा एक गीत संग्रह है। यह तुम्हें समर्पित है। तुम्हारा-मेरा आत्मिक सम्बन्ध है। उसके लिये मैं क्या कहूँ? तुमसे पराजित होने की इच्छा है और वह सदा रहेगी भी। गद्य-लेखन में तुमसे पराजित होकर मैं धन्य हुआ हूँ। अपनी शैली, अपनी भाषा, अपने विचार, अपने भाव, अपनी अभिक्ति-प्रणाली, सब में तुम अनोखे हो। यदि तुम तुर्के जोड़ने के अभ्यासी होते, तो निश्चय ही काव्य-क्षेत्र में भी तुमसे पराजित होकर मैं सुखी होता । इन गीतों को स्वीकार करो। चालकृष्ण शर्मा