पृष्ठ:रसकलस.djvu/११९

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१०२ - अब तक जो कुछ कहा गया उससे शृगार रस की प्रधानता ही प्रतिपादित हुई, और यही इष्ट था । श्रृंगार रस का साहित्य 'सहितस्य भाव साहित्यम्' जिसमे सहित का भाव हो, उसको साहित्य कहते है । इस सहित की व्याख्या क्या है ? उसे 'हिंदी शब्दसागर' के निम्नलिखित अवतरण मे देखिये- साहित्य-सज्ञा पु० (संस्कृत) (१) एकत्र होना, मिलना, मिलन । (२) वाक्य मे पदो का एक प्रकार का सवध जिसमे वे परस्पर अपे- क्षित होते है और उनका एक ही क्रिया से अन्वय होता है। ( ३ ) किसी एक स्थान पर एकत्र किये हुए मिलित उपदेश, परामश या विचार आदि । लिपिबद्ध विचार या ज्ञान । (४) गद्य और पद्य सब प्रकार के उन ग्रथो का समूह जिनमे सार्वजनीक मानव भाव बुद्धिमत्ता तथा व्यापकता से प्रकट किये गये हो।-पृ० ३५२६ प्रकृतिवाद मे साहित्य शब्द का यह अर्थ लिखा है- साहित्य-(सहित + य-भावे इत्यादि) स० क्वी० ससर्ग, मिलन । शब्द शास्त्र, काव्य शास्त्र, सवध विशेप, एकक्रियान्वयित्व शब्द-विवककार कहते है- परस्पर सापेक्षाणां तुल्यरूपाणा युगपदेश क्रियान्वयित्व साहित्यम् । शब्द-शक्तिप्रकाशिकाकार कहते हैं- तुल्यवदेकक्रियान्वयित्व बुद्धि विशेषविपयित्व वा साहित्यम् । शब्दकल्पद्रुमकार कहते है- मनुष्यकृत श्लोकमयग्रन्यविशेष साहित्यम् । कवींद्र रवीद्र क्या कहते हैं, उसे भी सुनियें- 'साहित्य का विषय मानव हृदय एव मानव चरित्र हैं। 'मानवचरित्र ही नहीं । वस्तुत बहि प्रकृति और मानवचरित्र