११३ बार-बार पढ़ा है। एक अँगरेज़ विद्वान् टोलाज की नायिका को देखिये- With orient pearl, with ruby red, With marble white, with sapphire blue Her body every way is ſed, Yet soft in touch and sweet in ViC; Heigh ho, fair Rosaline ! Nature herself her shape admires, The Gods are wounded in her sight; And Love forsakes his heavenly fires, And at her eyes his brand doth light: Heigh ho, would she mine ! उसकी देह कहीं मोती, कही लाल मणि, कही श्वेत सगमर्मर और कही नीलम से पुष्ट हुई है। परंतु स्पर्श मे कितनी कोमलता है, दर्शन में कितनी मधुरता है ! स्वयं प्रकृति उसके रूप की प्रशंसा करती है। देवता तक उसे देख कर मुग्ध हो जाते हैं । कामदेव तो स्वर्ग को छोड़ कर उसी के नेत्रो से अपना शर तीक्ष्ण करते है । क्या वह मेरी नहीं होगी । हमारी स्वकीया नायिका का क्या रूप है, उससे साहित्य-सवी परिचित है। उसमें पति-दोप देखने की शक्ति नहीं होती, वह मूर्तिमती प्रम होती है और सभी सहधर्मिणी बनकर रहती है देखिये जी० डार्ली की नायिका वही है कि दूसरी ? were . Give me, instead of Beauty's breast, A tender heart, a loyal mind, Which with temptation I could trust, Yet never linked with error find,- One in whose gentle bosom I Could pour my secret heart of woes,
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