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पृष्ठ:रसकलस.djvu/२१

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स्वच्छ करने का प्रयत्न किया है जिसका प्रयोग केवल परम्परागत रूढ़ियों की प्रेरणा से ही प्रायः प्राचीन परम्परानुयायी कवि किया करते हैं, जिनके प्रयोग, अर्थ आदि से जनता अब परिचित नहीं रह गई और जो भाषा की दुरूहता के ही कारण होते हैं। आपने कतिपय शब्द अपने नवीन भावों के लिये संस्कृत से लेकर बड़ी कुशलता से प्रयुक्त कर भाषा की शब्द-राशि को बढ़ाते हुए भाव-व्यंजकता भी बढ़ा दी है। वास्तव में किसी कवि का यह कार्य विशेष महत्ता एवं सत्ता सूचित करता है। जो कवि जितने ही नये, निराले शब्द एव प्रयोग (मुहावरे) कल्पित कर इस प्रकार प्रयुक्त करता है कि उनसे भाषा की भाव-व्यंजक क्षमता, शब्द-राशि तथा विचित्रता बढ-चढ़ जाती और उसमें विलक्षणता भी आ जाती है वह उतनी ही उत्कृष्ट श्रेणी का कवि माना जाता है। प्रत्येक महाकवि अपनी प्रतिभा के प्रभाव से अपनी एक विशेष भाषा तथा शैली (रीति-नीति) लेकर साहित्य-क्षेत्र में अवतीर्ण होता और जीर्ण शीर्ण प्रयोग-परिचय-च्युत रूढ़िगत शब्दादिकों के चर्वित चर्वण-प्राबल्य से समुत्पन्न अनिष्ट अजीर्ण को अपने अजीर्ण (नये निराले) शब्दादिकों से दूर करने का प्रयत्न करता है। दूसरे लोग फिर उसी का अनुकरण या अनुसरण करते हैं और उसे अपना पथ-प्रदर्शक और प्रधान प्रवर्तक मानने लगते हैं। उपाध्याय जी को भी हम इसी श्रेणी का महाकवि कह सकते हैं।

भाषा आपकी सर्वथा सुव्यवस्थित, सयत और सुगठित है, शब्दावली सब प्रकार भावानुकूल, रसपरिपोषक और सबल है। कोई भी शब्द शिथिल, अनावश्यक और केवल छद या पाद का परिपूरक नहीं है। प्राय आपने एक प्रधान और भावपूर्ण शब्द को लेकर उसी से बननेवाले अन्य कई प्रकार के शब्दों का यथावश्यकता चारु चमत्कार-चातुर्य के साथ प्रयोग करके एक विशेष प्रकार का कौशल दिखलाया है। सर्वत्र पद-मैत्री और वर्ण-मैत्री अपने सुदंर रूपों में पाई जाती है। शब्दों के