पृष्ठ:रसकलस.djvu/२४२

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(¿) विषय औदार्य धेर्य स्वभावसिद्ध-लीला विच्छित्ति विलास विभ्रम किलकिंचित् मोहायित बिब्बोक पृष्ठ २३४-२३५ २३५ २३५-२३६ २३६ २३६ २३६-२३७ २३७ २३६ २३८ २३७ २३८-२३६ २३६ २३६ २३६-२४० कुट्टमित विहृत ललित मद केलि तपन मुग्धता कुतूहल विक्षेप हसित २४० २४० चकित बोध कहाव रसनिरूपण- शृंगार-सयोग शृ गार विप्रलभ शृंगार विप्रलंभ श्रृंगार के भेद-१-पूर्वानुराग-प्रत्यक्ष दर्शन २४०-२४१ २४६ २४१-२४२ २४३ २४२ २४३-३६३ २४६-२५० २५०-२५१ २५१-२५२