पृष्ठ:रसकलस.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

नही हो जाता? क्या बधिक की वीणा पर हरिण अपने प्राण उत्सर्ग नहीं कर देता? वास्तविक बात यह है कि ध्वनि अपार शक्तिमयी है, अतएव ध्वन्यात्मक शब्द भी प्रभावशालिता में कम नही। परन्तु वर्णात्मक शब्द उससे भी लोकोत्तर है। वेद भगवान् जिस ज्ञान का महत्त्व इन शब्दो मे प्रकट करते हैं――‘ऋते ज्ञानान्न मुक्ति’, बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं होती, उस ज्ञान का आधारस्तम्भ वर्णात्मक शब्द है। ससार का साहित्य,जो समस्त सभ्यताओ का जनक है, वर्णात्मक शब्दो की ही विभूति है। इसीलिये ध्वन्यात्मक से वर्णात्मक शब्दो का महत्त्व अधिक है और निम्नलिखित श्लोक मे सगीत से साहित्य का स्थान प्रथम।

साहित्यसगीतकलाविहीन साक्षात्पशु पुच्छविषाणहीन।

‘साहित्य-संगीत-कला-विहीन जन बिना सीग पूछ का पशु है।’

तैत्तिरीय उपनिषद् मे लिखा है――

“धर्मा विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा लोके धर्मिष्ठ प्रजा उपसर्पन्ति, धर्मेण पाप- मपनुदति, धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितम् तस्माद् धर्म परम वदन्ति”

धर्म सारे जगत् की प्रतिष्ठा है, लोक मे धर्मिष्ट पुरुप की ओर प्रजा जाती है, धर्म से पाप कटता है। सव कुछ धर्म पर प्रतिष्ठित है, इसीलिये धर्म को सव से बढकर कहा गया है।

जिस धर्म की ऐसी महत्ता है उसके आधार ससार के धर्मग्रन्थ हैं, और धर्मग्रथो के अवलम्बन वर्णात्मक शब्द। मन्त्र की महिमा को कौन नही जानता। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं――मत्र परम लघु जासु बस, विधि हरि हर सुर सर्व’। मन्त्रो के विषय मे ऋग्वेद की यहा आज्ञा है――

“मन्त्रो गुरु (१।१६७-४), सत्यो मन्त्र (१, १, ५२, २), मन्त्रेमिः सत्यैः (१, ६७, ३), तमिदोचेमा विदथेषु शम्भुव मन्त्र देवा अनेहमम् (१, ४०, ६)।

मन्त्र गुरु है, मन्त्र सत्य हैं, हे देवतो, हम यत्रो में उन सच्चे मन्त्रो को कहे जो सुख देनेवाले और पाप से बचानेवाले है।

ये मन्त्र क्या है? वात्मक शब्दो के समूह मात्र। इससे अधिक