पृष्ठ:रसकलस.djvu/४२

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भास अर्थात् एकरस के रूप में परिणाम कैसे होता है? भिन्न-भिन्न कारणों से भिन्न-भिन्न काय ही होने चाहिए। इसका समाधान करते हैं। पहले विभावादि पृथक् पृथक् प्रतीत होते हैं, उसी समय उन्हें हेतु कहा जाता है, इसके अनंतर भावना के बल से और व्यंजना की महिमा से आस्वाद्यमान सब सम्मिलित विभावादिक सहृदयों के हृदय में प्रपानक रस की भाँति अखंड एकरस के रूप में परिणत हो जाते हैं। जैसे किसी प्रपानक रस में खाँड़, मिर्च, जीरा, हींग आदि के सम्मेलन से एक अपूर्व उन सब के पृथक्-पृथक् स्वाद से विलक्षण स्वाद पैदा होता है, उसी प्रकार विभावादि के सम्मेलन से एक अपूर्व रसास्वाद पैदा होता है, जो विभावादिको के पृथक्-पृथक् स्वाद से विलक्षण होता है।"—विमलाथदर्शिनी

यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि स्थायी भाव के व्यक्त होने का क्या अर्थ? दूसरी बात यह कि सत्र दर्शको के रति भाव को रसता क्यो नहीं प्राप्त होती?

जितने स्थायी अथवा संचारी भाव हैं वे वासना-रूप से सदैव मानवमात्र के हृदय में वैसे ही विद्यमान रहते हैं जैसे पृथ्वी में गंध। कहा गया है कि 'गंधवती पृथ्वी'; किन्तु पृथ्वी की गंध, वृष्टि होने पर ही विदित होती है। इसी प्रकार भावोदय भी विशेष कारणों से होता है। जिस समय कोई भाव हृदय में उदित होकर कार्यकारी बनता है, उसी समय उसकी प्रतीति अनुभावों द्वारा होती है। आदि में लहरे समुद्र में अव्यक्त अवस्था में रहती हैं, बाद को वे व्यक्त होती हैं। इस व्यक्ति का भी अनेक रूप होता है, कभी यह रूप बहुत साधारण होता है और कभी बहुत व्यापक, विशाल और अचितनीय! यही अवस्था हृदय और भावों की है। आप हृदय को समुद्र और भावों को लहरें समझे, भावोदय के कारणों को विविध समीर। कैसे अव्यक्त भाव व्यक्त होकर कार्यकारी हो जाता है, तरंगों की स्थिति और उनकी