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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३७

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रसकलस १६० विनय स्त्री अथवा पुरुष से विनय करके जब दूती कार्य साधन करती है तब उसे विनय कहते हैं। उदाहरण उत्तमा दूती दोहा- सुधि लीजै मो विनय सुनि गहत पिपासित पाय । सुधा - पियासे को सकति तू ही सुधा पिाय ।।१।। मध्यमा दोहा- मोहहु मोहित रसिक पै रस बरसहु दै मान । नयनन तजहु नीरज - नयनि करहु बिनय मम कान ||१|| अधमा दोहा- कर जोरे हूँ नहि तजति बरजोरी की बान । गिनती के हैं सुख - दिवस करु विनती को ध्यान ।।१।। कॉटे लौं कसकत रहत अस कत बोलत वैन । किये कहा फिरति कर सकरन ए नैन ||२|| स्तुति जब दूती स्तुति अथवा प्रशसा द्वारा अपना कार्य साधन करती है तब उमे स्तुति कहते हैं। प्रकरुन