६७ इसको प्रत्येक आर्यधर्मावलंबी समझ सकता है। अधमपात्रगत रति का यह रोमांचकर उदाहरण है। तिर्यग योनिगत रति-निर्यग योनि कीट पतगादि हैं, इनकी प्रीति का 'अथवा शृंगारलीला का वर्णन करना तिर्यग योनिगत रति कहलाती है.यथा- जाति चमेली कुज में निरखति ललित लतान । अलिनी योजति फिरति है, अलि को करि कलगान । निर्वग योनिगत रति की वर्णना को इसलिये रमाभास माना है कि उसमें अधिकांश विकल्पना होती है, वास्तविकता कम । मानव-समाज को गति के समान उसमे पूर्णता भी नहीं होती। गंद्र रसाभास; यथा- बात कहा वैरीन को का मो सम बलवान । निगरि गये बापट्टे पै हौं बगारि हाँ बान ।। गुरुजन पर क्रोध करना उचित नहीं, पिता सर्वप्रधान गुरु हे। इस दोह में कहा गया दे कि यदि मैं बिगड़ जाऊँगा, नो बाप को भी वाण मार देगा. इससे बढकर क्या अनौचित्य होगा, अतएव इसमे प्रत्यक्ष संदरलाभास है। भयानक रमाभास-जहाँ किसी नरपुंगव अथवा वीर में भय दृष्टि- गत होता है, वहॉ भयानक रलाभास होता है, यथा- सुने असुर की असुरता नुरपुर सफल सकात । देखि दसबदन को वदन सुरपति सुख पियरात ॥ इस पद्य मे वीर-शिरोमणि इंद्र के मुम्ब का गवण के भय से पीत दाना वर्णित है. उमलिये उनमे भयानक रमाभाम है। कण रसाभास-जा करणा अथवा दया का पात्र नहीं है, जब उस पर कृपा अथवा उसके विपय मे करुणा की जाती है, तब करुण रमाभास होता है. यथा-
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