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रसज्ञ-रञ्जन
 

होने में कितनी देर लग सकती है? क्षण भर के लिए मान लो कि यह कुछ न हो। न सही। अच्छा यदि नल के साथ तुम्हारा पाणि-ग्रहण संस्कार होने के पहले यमराज तुम्हारे या नल के किसी कुटुम्बी का प्राणापहरण करके घर में सूतक कर दें तो! साक्षी-करण समय में अग्नि यदि प्रज्वलित होने से इन्कार कर दें तो!! कन्या-दान के समय वरुण यदि जल की धारा रोक दें तो!!! बिना इन्द्राणी के सानिध्य के स्वयंवर निर्विघ्न नहीं समाप्त हो सकता। अतएव यदि पति की आज्ञासे शची तुम्हारे स्वयंवर में न आवे और उपस्थित राजों में विघ्न-रूप युद्ध छिड़ जाय तो!!! दमयन्ती! सोच-समझ कर काम करो, हठ और दुराग्रह अच्छा नहीं। मूर्खता छोड़ो। मैंने जो कुछ कहा उसी में तुम्हारा परम हित है। विघ्न करने के लिए देवताओं के उतारू होने पर किस की सामर्थ्य है जो वह हथेली पर रक्खी हुई चीज़ पर भी अपना अधिकार जमा सके?

नल की इन बातों को दमयन्ती ने अक्षर-अक्षर सच समझा। उसे विश्वास हो गया है कि अब नल की प्राप्ति असम्भव है। निराशा ने उसे अभिभूति कर दिया। उसके नेत्र पर सावन भादो की जैसी घन-घटा छा गई। उसका सारा धैर्य्य जाता रहा। वह महाविकल और विह्वल हो उठी। आँखो से आँसुओ की झड़ी लग गई वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसे मतिभ्रम-सा हो गया। कुछ होश में आने पर उसने विलाप आरम्भ किया—

दूसरों के अभिलषित फल के खा जाने का व्रत धारण करने वाले रे पापी दैव! तू अब कृतार्थ हो। मेरे निष्फल प्राणों के पात के साथ ही तू भी पतित हो जा। स्त्री हत्या का पाप अब सिर पर ले। वियोग-वह्नि से अत्यन्त तप्त हुए हृदय! तू किस चीज का बना है? इस्पात का तो तू है नहीं? यदि होता तो इतना ताप सहने पर अवश्य ही गल जाता। वज्र भी तू नहीं, क्योंकि पञ्च