लक्षण तीन भगण और दो गुरु है। इस नियम का प्रतिपालन करते हुए वे तीन ही तीन अक्षर वाले शब्द प्रयोग करते थे,जिस से छन्द की शोभा विशेष बढ़ जाती थी। तोटक में वे रूखे अक्षरवाले ही शब्द रखते थे; क्योंकि ऐसे अक्षर वाले शब्दों से सङ्गठित हुआ तोटक, ताल की द्रतगति के समान, मन को सविशेष आनन्दित करता है। हिन्दी के कवियों को भी इन बातों का विचार जरूर करना चाहिए।
दोहा, चौपाई, सोरठा, घनाक्षरी, छप्पय और सवैया आदि का प्रयोग हिन्दी में बहुत हो चुका। कवियों को चाहिये कि यदि वे लिख सकते हैं, तो इनके अतिरिक्त और-और छन्द भी लिखा करे। हम यह नहीं कहते कि ये छन्द नितान्त परित्यक्त ही कर दिये जायें। हमारा अभिप्राय यह है कि इनके साथ-साथ संस्कृत काव्यों में प्रयोग किये गये वृत्तों में से दो चार उत्तमोत्तम वृत्तों का भी प्रचार हिन्दी में किया जाय। इन वृत्तों में से द्रतविलम्बित, वंशस्थ और बसन्ततिलका आदि वृत्त ऐसे हैं जिनका प्रचार हिन्दी में होने से हिन्दी काव्य की विशेष शोभा बढ़ेगी। किसी-किसी ने इन वृत्तों का प्रयोग आरम्भ भी कर दिया है। यह सूचना उन्हीं लोगों के लिए है जो सब प्रकार के छन्द लिखने में समर्थ हैं, जो घनाक्षरी और दोहे अथवा चौपाई की सीमा उल्लङ्घन करने में असमर्थ हैं, उनके लिए नहीं।
आजकल के बोलचाल की हिन्दी की कविता उर्दू के विशेष प्रकार के छन्दों में अधिक खुलती है, अतः ऐसी कविता लिखने में तदनुकूल छन्द प्रयुक्त होने चाहिए।
कुछ-कुछ कवियों को एक ही प्रकार का छन्द सध जाता है; उसे ही वे अच्छा लिख सकते है। उनको दूसरे प्रकार के छन्द लिखने का प्रयत्न भी न करना चाहिए। यदि कविता सरस और मनोहारिणी है, तो चाहे वह एक ही अथवा बुरे से बुरे छन्द