लक्षण और उसका चित्र देखने से लाभ? अथवा दीपक अङ्कार के सूक्ष्म से सूक्ष्म भेदों को जानने का क्या उपयोग? हिन्दी में ऐसे कितने काव्य हैं जिनमें से सब भेद पाये जाते हैं? हमारी अल्प बुद्धि के अनुसार रस कुसुमाकर और जसवन्तजसो (!) भूषण के समान ग्रन्थों की, इस समय, आवश्यकता नहीं। इनके स्थान में यदि कोई कवि किसी आदर्श पुरुष के चरित्र का अवलम्बन करके एक अच्छा काव्य लिखता तो उससे हिन्दी-साहित्य को अलप लाभ होता। कनिष्ठा और ज्येष्ठा का भेद और उनके चित्र देखे तो क्या और न देखे तो क्या? और उत्प्रेक्षा अलङ्कार का लक्षण नामानुसार सिद्ध हो गया तो क्या ओर न सिद्ध हुआ तो क्या? नायिकाओं के भी झगड़ने में उलझने से हानि के अतिरिक्त लाभ को कोई सम्भावना नहीं। हिन्दी काव्य की हीन दशा को देख कर कवियों को चाहिए कि वे अपनी विद्या, अपनी बुद्धि और अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग इस प्रकार के ग्रन्थ लिखने में न करें। अच्छे काव्य लिखने का उन्हें प्रयत्न करना चाहिए। अलङ्कार, रस और नायिका निरूपण बहुत हो चुका।
इन समय, कवियों का एक दत्त कवि समाजों और कवि मण्डलों में बद्ध होकर समस्या पूर्त्ति करने में व्यग्र हो रहा है। इन पूर्त्तिकारों में से कुछ को छोड़ कर शेष, कविता के नाम की बड़ी ही अवहेलना कर रहे हैं। इनको चाहिए कि बिना योग्यता सम्पादन किये समस्या-पूर्त्ति करने के झगड़े में न पड़ें। अच्छी समस्या पूर्त्ति करना अनावारण प्रतिभावान का काम है। एक साधारण कवि अपने मनोऽनुकत्त विषय पर एक ही घड़ी में चाहे ५० पद्य लिख डाले और वे ना चाहे अच्छे भी हो, परन्तु किसी समस्या के टुकड़े पर अच्छा कविता कहने में वह शायद ही सफल-मनोरथ होगा। समस्या पूर्त्ति के लिए ज्ञान व कौशल