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रसज्ञ रञ्जन
 

तो यह उसकी भूल है। हाँ कविता के लक्षणो से च्युत. तुले हुये वर्णो या मात्राओ की पद्य नामक पंक्तियाँ व्यर्थ हो सकती हैं। आजकल प्रायः ऐसी ही पद्य-मालिकाओ का प्राचुर्य है। इससे यदि कविता को कोई व्यर्थ समझे तो आश्चर्य नही।

कविता यदि यथार्थ मे कविता है तो सम्भव नहीं कि उसे सुनकर सुनने वाले पर कुछ असर न हो। कविता से दुनियाँ में आज तक बहुत बड़े-बड़े काम हुये है। इस बात के प्रमाण मौजूद है। अच्छी कविता सुनकर कविता-गत रस के अनुसार दुःख, शोक, क्रोध, करुणा और जोश आदि भाव पैदा हुये बिना नही रहते। जैसा भाव मन मे पैदा होता है,कार्य के रूप में फल भी वैसा ही होता है। हम लोगो मे, पुराने जमाने मे, भाट,.चारण आदि अपनी-अपनी कविता ही की बदौलत वीरो में वीरता का संचार कर देते थे। पुराणादिमे कारुणिक-प्रसंगो का वर्णन सुनने और उत्तर रामचरित्र आदि दृश्य काव्यों का अभिनय देखने से जो अश्रुपात होने लगता है वह क्या है? वह अच्छी कविता ही का प्रभाव है। पुराने जमाने मे ग्रीस के एथेन्स नगर वाले मेगारा वालो से वैरभाव रखते थे। एक टापू के लिये उनमे कई दफे लड़ाइयाँ हुई। पर हर बार एथेन्स वालो ही की हार हुई। इस पर सोलन नाम के विद्वान् को बड़ा दुःख हुआ। उसने एक कविता लिखी। उसे उसने एक ऊँची जगह पर चढ़कर एथेन्स वालोको सुनाया। कविता का भावार्थ यह था।

"मैं एथेन्स मे न पैदा होता तो अच्छा था। मैं किसी और देश में क्यो न पैदा हुआ? मुझे ऐसे देश में पैदा होना था जहां के निवासी मेरे देशवासियो से अधिक वीर, अधिक कठोर हृदय और उनकी विद्या से बिलकुल बेखवर हो। मैं अपनी वर्तमान अवस्था की अपेक्षा उस अवस्था मे अधिक सन्तुष्ट होता। यदि