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७-हंस का नीर-शोर-विवेक
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अण्डे देते हैं। जाड़ा, प्रारम्भ होते ही, शीताधिक्य के कारण, मानसरोवर छोड़ करके नीचे चले आते हैं, पर विन्ध्याचल के आगे वे नहीं बढ़ते। विन्ध्य और हिमालय के बीच ही में निर्मल जल राशि-पूर्ण तालाबों और नदियो के किनारे वे रहते हैं। चैत्र-वैशाख में वे हिमालय की तरफ चले जाते है। जिन जलाशयो मे कमलों की अधिकता होती है, वे हंसों को अधिक प्रिया होते हैं । वही वे अधिक रहते हैं। उनके शरीर का रङ्ग सफेद होता है और उनके पैर लाल होते हैं। चोंच का रङ्ग भी लाल होता है, डील-डौल उनका व्रतक से कुछ बड़ा होता है।

यदि हंस दूध पीते हैं, तो दूध उनको मिलता कहाँ से है मानसरोवर-मे उन्होने गायें या भैसें तो पाल नही रक्खी और न हिन्दुस्तान ही के किसी तालाब या नदी में उनके दूध पीने की कोई सम्भवना! इससे गाय अस का दूध पीना हंसों के लिए असम्भव-सा जान पड़ता है। कोई-कोई कवि-जन कहते हैं कि हंस मोती चुगते हैं। पर मोती भी मानसरोवर मे नहीं पैदा होते। यदि उसमें मोतियो का पैदा होना मान भी लिया जाय तो हिन्दुस्तान के तालाबों मे, जहाँ वे कुछ दिन रहते हैं, मोतियों का पैदा होना आज तक नही सुना गया ।हां,एक बार हमने कहीं पढ़ा था कि 'पजाव, या राजपूताने की किसी झील मे कुछ शुक्तियाँ ऐसी मिली थीं जिनमे मोती थे, पर क्या जितने हंस मानसरोवर छोड़ कर नीचे आते हैं वे सिर्फ उसी झील में जाकर रहते और मोती चुगते हैं? वहाँ भी यदि मोती विखरे 'हुए पड़े हों, तभी,उन्हे हंस-गण आसानी से चुनेगे? पर यदि, वे शुक्तियो के भीतर ही रहते हों तो उनको फोड़ कर मोती निकालना हंसो के लिए जरा कठिन काम होगा। पर इन सम्भावनाओं का कुछ अर्थ नहीं।निर्मल जल की उपमा मोती से दी जाती है और मानसरोवर का जल अत्यन्त निर्मल है। इससे उसके