पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१०१

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१०२ रसिकप्रिया शब्दार्थ-नेह =तेल; प्रेम । दसा=अवस्था; बत्ती। सँजोय= जला, बाल । ज्योति ही के प्रकाश के ही । तम-तेज = अंधकार का आधिक्य; मन का मालिन्य । अन्न = अन्न, भोजन। आखिन० = सिर्फ अन्न ही आंच से देखते रहने से। इंदुमुखी = चंद्रमुखी। इंदीवर० = कमल के से नेत्रवाली । इंदिरा = लक्ष्मी । गँवारि = मूर्ख, पगली। भावार्थ-(सखी की उक्ति नायिका से) तू स्नेह-दशा (प्रेम की अवस्था तेल और बत्ती ) से दीपक जला (प्रियतम से मिल) केवल ज्योति ( प्रिय के शरीर की कांति ) का ध्यान करने से तम का तेज (अंधकार की प्रचंडता, उदासी की अधिकता ) कैसे नष्ट कर सकेगी। क्या आँखों में अन्न बांध लेने से (प्रांतों से अन्न देखते रहने से) किसी की भूख मिटी है ( या तेरी ही भूख मिट जायगी )। सिर्फ पानी की कथा कहने से, मेरी रानी, प्यास कैसे बुझेगी ? ऐ मेरी चंद्रमुखी कमलनयनी सखी क्या लक्ष्मी का चित्र ही लिख देने से घर में संपत्ति भर जाएगी ? इन दिनों को (जब कि प्रियतम से मिलने के भनेक अवसर प्राप्त हो सकते हैं) ऐ पगली इस प्रकार ( केवल चित्र देखने में) तू बिताए दे रही है । क्या प्रिय का चित्र देखने से ही तुझे प्रिय से मिलने का सुख प्राप्त हो जाएगा। श्रीकृष्णजू को प्रच्छन्न चित्रदर्शन, यथा ( कवित्त) (१३०) रूठिबे को तूठिबे को मृदु मुसक्याय के, बिलोकियो को भेद कछु कह्यौ न परतु है। केसौदास बोले बिनु बोलनि के सुनें बिनु, हिलनि मिलनि बिनु मोहि क्यों सरतु है। कौ लगि अलोनो.रूप प्याय प्याय राखौं नैन, नीर देखें मीन कैसे धीरज धरतु है। चित्रिनी बिचित्र चित्र नीकें ही चितैयै मन, चित्र में चिताएँ चित्त चौगुनो जरतु है ।१०। शब्दार्थ-रूठिबे को = खीझने का। तूठिबे कोरीझने का । हिलनि% निकट जाना । मिलनि-भेंटना, आलिंगन करना। मोहि = मुग्ध होकर । सरतु है = पूरा होता है । अलोनो रूप = सजीव लावण्य से रहित सौंदर्य ( चित्र में लिखा होने के कारण ) । नीके ही= संभलकर । चिताएँ = सचेत करने से, संतोष दिलाते रहने से; सुलगाने से । भावार्थ-(नायक की स्वगत उक्ति) उस (प्यारी) के खीझने-रीझने,कोमल मुसकान के साथ देखने का रहस्य कुछ कहा नहीं जा सकता। बिना उससे १०-को-कहि । मोहि-मोह । देखें-बिना । चित्र-किन नीकेई । में चिताएं-चितए तें, चितए में। .