पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/११७

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पंचम प्रभाव पाप क्या बटोर लेंगे ? (आपके न जाने) मेरी समझ में यदि कहीं वह काम- देव की कली कुंम्हला गई तो फिर क्या फूलेगी ? ( कदापि नहीं ) । अथ प्रथम-मिलनस्थान-वर्णन-( दोहा ) (१६३) जनी सहेली धाइ घर, सूने घर निसि चार । अति भय उत्सव व्याधि मिस न्यौते सु बन-बिहार ।२४। शब्दार्थ-जनी = दासी। चार = चलना, घूमना। निसि०=रात में भ्रमण । ब्याधि= रोग। ( दोहा ) (१६४) इन ठौरनि ही होत है, प्रथम मिलन संसार । केसव राजा रंक को, रचि राखे करतार ॥२५॥ जनी के घर को मिलन, यथा-( कबित्त) (१६५) बेषु कै कुमारिका को ब्रज की कुमारिकानि, माँझ साँझ केसौदास त्रास पग पेलिकै। काम की लता सी चपला सी प्रेम पासी सी है, राधिका के बुद्धिबल कंठ भुज मेलिकै । दौरि दौरि दुरि दुरि पूरि पूरि अभिलाष, भाँति भाँति के अनूप-रूप बहु केलि कै । जनी के अजिर आज रजनो में सजनी री, साँची करी स्याम चोरमिहचनी खेलिकै ।२६। शब्दार्थ-त्रास पग पेलिकै = भय को पैरों से दवाकर, निर्भय होकर । चपला = बिजली। प्रेमपासी सी-प्रेम के फंदे की भांति । मेलिकै =डाल कर । दुरि दुरि-छिप छिपकर । बहु केलि कै= अनेक क्रीड़ा करके । जनी - दासी। अजिर = आंगन । चोरमिहचनी खेलिकै = आंखमिचौली खेलकर । भावार्थ-( सखी की उक्ति सखी प्रति ) हे सखी, आज कृष्ण ने स्वयम् कुमारी का वेश बनाया और संध्या-ममय निर्भय होकर ब्रज कुमारियों में जा मिले । उन्होंने बुद्धि के कौशल द्वारा काम की लता, बिजली एवम् प्रेमपाश स्वरूप सुदरी राधिका के गलबांही डाल दी। अखिमिचौली खेल के बहाने दौड़ दौड़कर छिप छिपकर और इस प्रकार अभिलाषों की पूर्ति करते हुए उन्होंने लाखों प्रकार की अद्वितीय कामक्रीड़ा की । (चोर बने हुए) श्रीकृष्णजी ने, दासी के आंगन में आज रात्रि को ( इस रीति से ) आंखमिचौली के २४-सूने घर-धरनि संचार । सु बन-बिपिन । २५-इन-इनहीं ठौरनि राखे-राखो। २६-चपला सो०-चल प्रेमपास सी अमल । भांति भौति-लाख भाँति । करी-कीन्ही ।