पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१४५

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सप्तम प्रभाव १४७ शब्दार्थ-चोली = पान रखने की डलिया। पान = तांबूल । करत सँवारिबोई = संवारते रहते हैं। तियदेवता= स्त्री ही है देवता जिसके लिए ( वह पति )। भावार्थ-( सखी की उक्ति नायिका से ) हे सखी, वे तुझे डलिया में रखे पान की तरह उलट पलट कर संवारते रहते हैं, दर्पण की भांति तुझमें ही उनकी मूर्ति बसी हुई है । पतिदेवता (पतिव्रता, पति को देवता माननेवाली) स्त्रियां तो बहुत सी प्रसिद्ध हैं पर स्त्रीदेवता ( स्त्री को देवता माननेवाला) पति तो तुझी को मिला है। तेरे मनोरथ रूपी भगीरथ के रथ के पीछे पीछे मेरे कृष्ण गंगाजल की भांति चलते हुए दिखाई देते हैं ( तेरे मनोरथ के अनुकूल कार्य करते देखे जाते हैं ) हे रानी, उन्होंने तेरी ऐसी कौन सी बात थी जो टाल दी ? वे तो तेरी बात वेद-वाणी-तुल्य समझते हैं। अलंकार-दृष्टांत और रूपक । सूचना-वेदवाणी अमान्य नहीं की जाती जैसे स्वामी की वाणी। श्रीकृष्ण नायिका की वाणी भी अमान्य नहीं करते । अथ उत्का-लक्षण-(दोहा) (२४४) कौनहुँ हेत न आइयो, प्रीतम जाके धाम । ताकों सोचति सोचि हिय, केसव उत्का बाम ७ प्रच्छन्न उत्का, यथा-( कबित्त ) (२४५) किधौं गृह-काज के न छूटत सखा-समाज, किधौं कछू आज ब्रत-बासर बिभात ते दीनो तैं न सोध, किधौं काहू सों भयो बिरोध, उपज्यो प्रबोध किधौं उर अवदात सुख में न देह किधौं मोहीं सों कपटनेह, किौं देखि मेह अति डरे अधरात तें किधौं मेरी प्रीति की प्रतीति लेत केसौदास, अजहूँ न आए मन सुधौं कौनी बात ते शब्दार्थ-किधौं गृहकाज = घर का कोई काम प्रा पड़ा है। कै- अथवा । छूटत न = छोड़ न सके । ब्रत-बास र = व्रत का दिन । विभात प्रभात । आज = आज व्रत के दिन का प्रभात ( प्रारंभ )। सोध = पता, समाचार । बिरोध = झगड़ा ! प्रबोध = ज्ञान, वैराग्य । प्रवदात = विमल । ७-उत्का-उत्कंठिता। सोचि-सोच । केसव०-सो उत्कंठा । ८-केन- कि न, किधों । छूटत-यूटयो न । किधों उर-उर सोधु । केसवदास-केसवराइ। सुधौ-धौ।