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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१७३

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१७६ रसिकप्रिया श्रीराधिकाजू को प्रच्छन्न प्रलाप, यथा-( सवैया ) (३१७) खेल न हाँसी न खोरि श्रठाउ न देत न बैर हियो कँपै रोसों। लेनो न देनो हलाव भलाव न नातो न गोतो कहाँ कहौं तोसों। आनि दियो दुख में दुख केसब कैसे हँसौ री कहा कहि कोसों। नैन भरिंभरि ग्वालि कहै अरी देख्यो त कान्ह कहा कह्यो मोसों ॥३६॥ शब्दार्थ-खोरि = दोष, दुष्टपना । अठाउ = शरारत । हेत प्रेम। लेनो०% लेना देना कुछ नहीं । हलाव० =हला भला भी नहीं है, दुपा सलाम या भेंट असीस वाली बात भी नहीं। नातो० = नाता गोता भी नहीं, नाता रिश्ता भी नहीं है । कोसों-बुरा भला कहूँ कोस् । खेलन० = न तो उनसे खेल खेलने का ही वास्ता है, न उनसे हँसी-मजाक ही है, न कोई दुष्टपना या शरारत ही जान पड़ती है न उनसे कोई मेल-मुहब्बत है और न शत्रुता ही है । पर उन्होंने जो कुछ कहा है उससे मेरा अंतःकरण रोष से कांप रहा है । भरिभरि आँसू से भली भांति भरकर । देख्यो तै० = देखा तूने मुझसे कृष्ण ने क्या कहा ? लेनो०%न उनसे अपना कुछ लेना देना, न दुआ सलामत, न नाता-गोता फिर भी उन्होंने मुझसे ऐसी बात कही, तुझसे क्या कहूँ। मानि० = मैं अपने ही दुख में दुखी थी, उन्होंने मुझे इस दुख में दुख दिया। न हँसते ही बनता है न कोसते ही ( हंसू तो किस बात पर और कोसू तो किस बात पर और कोसू तो क्या दोष लगाकर कोसू)। श्रीराधिकाजू को प्रकाश प्रलाप, यथा-( सवैया ) (३१८) आलिनि माँझ मिली हुती खेलति जानै को कान्ह धौं आए कहाँ ते । डीठिहि डीठि परथो न कछू सठ ढीठ गही हठि पीठि की घातें। गई गडि लाजनहीं हिय हौं तौ उठी जरि केसव कॉपति यातें। इती रिस मैं कबहूँ न बची पैरही पचि हौं अँखियान के नाते ।३। शब्दार्थ-जाने कोन जाने । डीठिहि० = आँखों से तो कुछ दिखलाई नहीं पड़ा ( सामने से तो वे आए नहीं )। सठ-दुष्ट ने। ढीठ-धृष्ट, नायक । हठिः 3 बरबस । पीठ की घात = पीठ की घात से, पीछे की ओर से। हौं गड़ि०= मैं लाज के मारे गड़ गई। उठी जरि० = मैं उस ढिठाई के कारण जल उठी, इसी से कांप रही हूँ। इती रिस० = इतना रोष तो मैंने कभी सहन नहीं किया । केवल आँखों के नाते इतनी परेशानी सह रही हूँ। ३६-हियो-हिये। कैपै-करि । रौसों-होंसों। लेनो-लेन न देन । हलाव० हलाउ भला नहि, हलाउ भलाउत। दुख में-सुख भी । हँसौ-सहौं । नैन-नैननि नीर भरे कहै ग्वालिन । परी-अलि । ३७-प्रालिनि-आलि के । डोठिहि-ढोठहि, सु डीठहिं। सठ-सुठि । गई-हौं । हिय हौं ती-जु गई पै। केसव-को सब । काँपति-कांपनी । यातें-वातें। बची-सही । पचिहाँ-बचिहौं ।