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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१९३

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दशम प्रभाव १६७ अथ दान उपाय-लक्षण-( दोहा ) (३६५) केसव कौनहुँ ब्याज-मिस, दै जु छुटावै मान । बचन-रचन मोहै मनहिं, तासों कहियै दान !६॥ शब्दार्थ-ब्याज = बहाने से । मिस = बहाना। बचन-रचन = वचनों की रचना से, मीठी बातों से । 'ब्याज-मिस' 'सदासर्वदा' की भाँति द्विरुक्ति है । (३६६) जहाँ लोभ तें दान लै, छाँडै मानिनि मान । बारबधू के लच्छ नहिं, पावै तबहि प्रमान [७) सूचना-पहले दोहे में कहा गया है कि जहाँ किसी बहाने से कुछ देकर मान छुड़ाया जाय और मीठी बातों से मन मोहा जाय वहाँ दान उपाय होता है । गणिका भी द्रव्य लेती है । इससे दान का उपाय गणिका में ही संभव जान पड़ता है। अतः दोनो का अंतर स्पष्ट करने के लिए दूसरा दोहा लिखा गया है । जहाँ मानिनी के हृदय में लोभ हो वहाँ गणिका और जहाँ उसके हृदय में द्रव्य-लोभ न हो वहाँ ( दान उपाय में ) गणिका नहीं समझनी चाहिए । गणिका में द्रव्य का लोभ होता है। दान उपाय में धन ही नहीं अन्य वस्तुएँ भी दी जाती हैं। श्रीराधिकाजू को दान उपाय, यथा-(कबित्त) (३६७) कोमल अमल दल दीने हे कमल-भव, अरुन अरुन प्रभुजू कौं सुखदाइयै । केसौदास सोभाधर सधर सुधा के धर, मधुर अधर उपमा तौ इनि पाइये । उरज-मलय-सैल-सील सम सुनि देखि, अलक-बलित-ब्याल आसा उरझाइयं । निपट निगंध यह हार बंधुजीव को सु, चाइत सुगंध भयो नेक ग्रीव नाइये ।। शब्दार्थ-दल-पत्र । कमल-भव = ब्रह्मा । अरुन = ( अरुण ) लाल । . 'मरुन प्रभु = सूर्य भगवान् । सधर = ऊपर का अोठ । अधर-नीचे का ओठ । सैल%3D ( शैल ) पर्वत । बलित =युक्त । ब्याल =सर्प । बंधुजीव = फूल- दुपहरिया । नेक = थोड़ा । ग्रीव = कंठ में। भावार्थ-( नायिका ने मान किया है, नायक ने सूखी के द्वारा फूल- दुपहरिया की माला भेजी है, सखी नायिका से कह रही है ) हे सखी, इसकी पंखुड़ियां ब्रह्मा ने कोमल और स्वच्छ बनाई हैं । इसका रंग लाल है और यह ६-मिस-कछु । छुटावै-छुड़ावै । मनहि-मनै । तासों-ताकों । कहिये - कहियत । ७-लै-तें । तबहिं-तहाँ। ८-दीने-दीन्हें, कीन्हें । सधर०-अधर, सुघर । घर-घर | उरझाइयै-उर लाइए, उर पाइए, उर धाइय ।